Sunday, April 5, 2020

Potter's Wheel_Indus Valley_कुम्हार का चाक_कुलालचक्र







कुम्हार के चाक का भारत में कब आविष्कार हुआ यह कहना कठिन है क्योंकि हमें आज से 5000 वर्ष पूर्व के भी जो बरतन सिन्धु सभ्यता के प्राप्त हुए हैं, वे भी हाथ के चाक पर बने हुए हैं। 


इसके आविष्कार ने मनुष्य के जीवन में एक क्रांति उत्पन्न कर दी होगी, इसमें सन्देह नहीं है। यह चाक, जो हमें आज कुम्हारों के घरों में दिखाई देता है, प्रायः उसी आकार का है जैसा प्राचीन भारत में व्यवहृत होता था। इसके आकार में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है।

आज भी ग्रामीण भारत में निवासी मिट्टी के बर्तनों को सबसे पवित्र समझते हैं और एक ही बार व्यवहार करके फेंक देते हैं।

हमारे यहां तो ऐसी किंवदन्ती है कि असुरों ने चाक का सबसे पहिले आविष्कार किया तथा इसी कारण मिट्टी के बने बरतनों का प्रेतकर्म में व्यवहार निषिद्ध है।


सिन्धुघाटी की सभ्यता में नीचे के स्तरों से भी चाकके बने बरतन प्राप्त हुए हैं जिनको इतिहासकार पिग्गट ने ईरान से प्राप्त बरतनों का समकालीन कहा है।


इससे भी यह सिद्ध होता है कि प्राचीन भारत में भी उसी काल में चाक का व्यवहार होने लगा था जब ईरान में हो रहा था।
इस चाक को भारतीय समाज ने उत्तरकाल में अपने जीवन में इतना महत्व दिया गया कि विवाह जैसे शुभ कर्मों में (विशेषकर उत्तरी भारत में) तो इसका पूजन भी प्रचलित हो गया तथा प्रत्येक विवाह कर्म इन नये बनाये हुए मिट्टी के बरतनों से प्रारम्भ होने लगे।

वैदिक इण्डेक्स के अनुसार, शतपथ में इसे "कुलालचक्र" की संज्ञा दी गई है।


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