वल्लभ भाई पटेल की पत्नी ज़ावेरबेन गुना गांव से थी। उन्होंने गोधरा में अपना परिवार प्रारंभ किया। उन दिनों प्लेग एक महामारी के रूप में फैला, जिसे देखते हुए उन्होंने अपनी पत्नी को दूर भेज दिया और स्वयं एक संक्रमित मित्र की तिमारदारी में लग गए।
प्लेग समाप्त होने के बाद वे वापस काम पर लौटे और फिर से वकालत करने लगे। इसके बाद वे बोरसाड़ चले गए, जहां इस दंपति के दो बच्चे मणिबेन और दया भाई पैदा हुए। उनकी पत्नी ज़ावेरबेन अधिक जिंदा नहीं रहीं और जवानी में ही कैंसर के कारण चल बसीं। वल्लभ भाई ने बच्चों के लिए मां की भूमिका भी निभाई। दया भाई अपना खुद का काम करने लगे और मणिबेन ने अपना जीवन पिता को समर्पित कर दिया और जीवन-पर्यंत उनका ध्यान रखा।
परिवार के प्रति उनका समर्पण भी उल्लेखनीय था। यह उल्लेखनीय है कि अपनी जवानी में उन्होंने अपने अग्रज विट्ठल भाई के लिए जबर्दस्त त्याग किया था। वल्लभ भाई ने अधिवक्ता के रूप में कठिन परिश्रम किया और कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जा कर काफी धन जमा कर लिया था। उन्होंने इसके लिए आवेदन भेजा और दाखिले संबंधी दस्तावेज उन्हें प्राप्त हो गए। परंतु, दाखिला श्री वी.जैड. पटेल को मिला। विट्ठलभाई उनके अग्रज थे और वे भी इंग्लैंड जा कर कानून की पढ़ाई करना चाहते थे। उन्होंने दाखिला दस्तावेज का आवरण पृष्ठ देखा और अपने अनुज वल्लभ भाई को सुझाव दिया कि पहले अध्ययन के लिए वे जाएंगे, चूंकि उनका नाम भी वी.जैड. पटेल है। वल्लभ भाई ने गरिमापूर्ण ढंग से अपनी बारी का त्याग कर दिया। उन्होंने न केवल विट्ठल भाई के लिए त्याग किया, बल्कि इस दौरान अपनी भाभी की भी बड़े सम्मानपूर्वक देखभाल की।
उस समय के अन्य नौजवानों से भिन्न वल्लभ भाई अंतत: 37 वर्ष की आयु में बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड गए। दुर्भाग्य से अध्ययन के लिए जाने से पहले उनकी पत्नी का देहांत हो गया। उस समय वे बोरसाड में अधिवक्ता के रूप में वकालत कर रहे थे। पत्नी को कैंसर था और उनका आपरेशन किया जाना था। वल्लभ भाई उन्हें बंबई (अब मुंबई) के हरकिशनदास अस्पताल ले गए और सर्जरी की तैयारी की जा रही थी। परंतु उन्हें एक मामले के सिलसिले में वापस आना पड़ा। उन्होंने सोचा था कि वे जल्द ही वापस लौट आएंगे। परंतु, विधि को कुछ और ही मंजूर था। जब वे अदालत में जिरह के लिए जा रहे थे, तभी उन्हें टेलीग्राम मिला कि ज़ावेरबेन नहीं रहीं। उन्होंने तार को अपनी जेब में रखा और शांत भाव से पैरवी के लिए गए। पैरवी पूरी होने के बाद ही उन्होंने पत्नी की मृत्यु के समाचार का खुलासा किया।
इस घटना के 19 वर्ष बाद मौलाना शौकत अली ने उन्हें ‘ए वॉल्कैनो इन आइस’ यानी ‘बर्फ में ज्वालामुखी’ की संज्ञा दी। उन्होंने अपने दोनों बच्चों को मुम्बई में मिशनरी छात्रावास में रखा।
स्रोत: सरदार वल्लभ भाई पटेल के व्यक्तित्व के अनजाने पहलू_सुदर्शन अयंगर_गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद के पूर्व कुलपति (रोजगार समाचार में छपा लेख)
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