Wednesday, January 23, 2013

Delhi: Morning of Fog

मौसम की फिजा बेइमान है, जो दिखता है वह महसूस नहीं होता और जो महसूस होता है, वह दिखता नहीं । सुबह कोहरे की चादर में लिपटी दिल्ली की शक्ल मानो पहचान कर भी नहीं बूझी जा रही थी मानो कोहरे में चेहरा कहीं गुम हो गया हो । पर क्वीन मेरी स्कूल के दरवाजे पर फर्श पर सोया हुआ आदमी यू उठकर खड़ा हुआ मानो बच्चों के स्कूल की घंटी उसके लिए ही बजी हो । भोर में अगर उजाला न हो तो बच्चों और बूढ़ों को वक्त का गुमान ही नहीं होता जैसे मेरा छोटा बेटा खिड़की से झांकता है तो उसे गुप्प अंधेरा नजर आता है तो वह यह कहते हुए दोबारा सो जाता है कि अभी तो रात बाकी है ।

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