Friday, January 11, 2013
150 years of Mahavir prasad Dwivedi
सुधा के जुलाई 1933 अंक में महान रचनाकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने आचार्य अमर हों शीर्षक से अपनी संपादकीय में लिखा था कि – वे (आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी) हिंदी भाषा के प्रकांड पंडित हैं। हिंदी भाषा के सर्वश्रेष्ठ संपादक, समालोचक और लेखक हैं। हिंदी भाषा कैसे लिखी जाती है, यह उन्होंने लिख कर दिखा दिया। पत्र का संपादन कैसे किया जाता है, यह उन्होंने स्वयं संपादन करके बता दिया, समालोचना क्या वस्तु है, यह उन्होंने अपनी सामालोचनाओं द्वारा व्यक्त कर दिया। वह आधुनिक हिंदी के निर्माता हैं, विधाता हैं, सर्वस्व हैं। वह राष्ट्रभाषा हिंदी के मूर्तिमान स्वरूप हैं। उन्हें लोग आचार्य कहते हैं-वह सचमुच आचार्य हैं। आधुनिक हिंदी की उन्नति और विकास का अधिकांश श्रेय उन्हीं आचार्य को है। वह अपने को राष्ट्रभाषा का विनम्र सेवक बताते हैं, जबकि राष्ट्रभाषा उनको अपना निर्माता कह कर पुकारती है।..वह इतने बड़े होकर भी हमसे इतने प्यार से बोलते हैं। वह इतने ऊंचे हम तुच्छ साहित्य सेवियों से किस स्नेह से मिलते हैं। यह उनकी उदारता है, बड़पप्पन है।
(महान रचनाकार औऱ हिंदी के निर्माता आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी की 150वीं जयंती 2013-14 में ही पड़ने जा रही है। )
(साभार: अरविंद कुमार सिंह के लेख से)
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