Sunday, January 20, 2013
sardar jafari on meera
यह तो नहीं कहा जा सकता कि मीरा हिन्दुस्तानी कवियों में सर्वश्रेष्ठ स्थान रखती हैं लेकिन इस दृष्टिकोण के सत्य होने में किंचितमात्र भी सन्देह की आशंका नहीं कि मीरा से बड़ी कवयित्री हिन्दुस्तान की धरती आज तक नहीं पैदा कर सकी। किसी भी प्राचीन या आधुनिक हिन्दुस्तानी भाषा में ऐसी कोई कवयित्री नजर नहीं आती जिसे हम मीरा के मुकाबले में ला सके। मीरा के भावनालीन प्रभावपूर्ण गीत आज लगभग साढ़े तीन सौ साल बीतने के पश्चात् भी करोड़ों इनसानों के दिल की आवाज़ बने हुए हैं।
बात को थोड़ा सा और विसतार देकर यूँ भी कहा जा सकता है कि सारे विश्व की कवयित्रियों में दो प्रतिभाएँ उस स्थान पर हैं जहाँ कोई कवयित्री नहीं पहुँच सकी है। इनमें से एक कवियित्री ईसा से 700 वर्ष पूर्व यूनान की सेफो़ है और दूसरी सोलहवीं शताब्दी में हिन्दुस्तान की मीरा। दोनों ने प्रेम काव्य का सृजन किया है, दोनों में भावों की तीव्रता है।
दोनों की रचनाओं में एक टीस, एक पीड़ा और एक वेदना है। लेकिन मीरा इस दृष्टि से सेफो़ से श्रेष्ठ हैं कि सेफो़ का प्रेम हाड़ मांस के जिस्म और उसके विदित सौन्दर्य से है, जबकि मीरा के प्रेम में एक मानवीय श्रद्धा और पवित्रता है। उनकी रचनाओं में शरीर और शारीरिकता केवल लक्षण तथा बिम्ब की हैसियत रखते हैं जिनकी सहायता से वह अपने उन दिलों तक पहुँचाती हैं जो कृष्ण के अदृश्य व्यक्तित्व के सौन्दर्य का पूरी तरह अनुभव नहीं कर सकते।
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