Tuesday, January 22, 2013
Lori of Nani and Moon on top of the world
बचपन में ननिहाल में नानी लोरी सुनाती थी, चंदा मामा दूर से खीर खिलाई पूर से..................
नानी, नानी का घर, जिसका नाम उनके नाम पर नाना ने मालती भवन रखा था, घर में पहली मंजिल पर चढ़कर दाहिने कोने में बनी खपरैल की रसोई और रसोई से ऊपर जाती सीढि़या । उन सीढि़यों पर बैठकर कांसे के कटोरे में दूध के साथ मक्के की रोटी को खाते हुए, चंदा मामा की कहानी के साथ आसमान में निकले चांद को निहारने का सुख अब किसी परीकथा की कहानी लगता है ।
सोचता हूं कि अब मेरे बेटे को दिल्ली में न तो खाने के लिए घर में कांसे की कटोरी है न छत पर जाने वाली सीढि़यों पर बैठकर चंदा मामा को देखने की सुविधा । खैर, उसे टीवी पर पोगो पर कार्टून देखने से फुर्सत मिले तो न । वैसे इसके लिए भी परिवार ही जिम्मेदार है, आखिर बाहर जाते हैं तो बच्चे घर में उधम न मचाएं तो इसके लिए टीवी चलाने की शुरूआत तो हमने ही की थी ।
दूसरा, उसकी नानी अपने घर से बहुत दूर विदेश में है तो दादी उस समय चांद तारों की दुनिया में चली गई जब बेटा केवल चंद महीनों का था ।
हां, दादी ने उसके मुंह में खाने का पहला निवाला जरूर डाला था पर दादी के लिए पोते का वह निवाला बस आखिरी ही रहा । वह ऐसे कि उसी शाम दादी को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा और जैसा होता है महानगरों के निजी अस्पतालों में कि मर्ज कुछ था और ईलाज कुछ । सो, दादी एक बार आइसीयू में गई तो फिर बस लौटी नहीं ।
ऐसे में मेरे बेटे का क्या कसूर, सो, दिल्ली में चांद निकलता तो है पर अब लोरी नहीं मिलती ।
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