Thursday, May 30, 2013

Bharat-Nirmal Verma


देशभक्ति, देशप्रेम....क्या .ये सिर्फ थोथे शब्द हैं, जिन्हें हमारे आधुनिक बुद्धिजीवी मुँह पर लाते हुए झिझकते हैं, जैसे वे कोई अपशब्द हों, सिर्फ एक सतही, मस्ती भावुकता, और कुछ नहीं ? कौन स्वतन्त्र हुआ ?
नहीं, देश के प्रति यह लगाव न तो इतिहास में अंकित है, न भूगोल की छड़ी से नापा जा सकता है, क्योंकि अन्ततः वह...एक स्मृति है, व्यक्तिगत जीवन से कहीं अधिक विराट और समय की सीमाओं से कहीं अधिक विस्तीर्ण....हमारे समस्त पूर्वजन्मों का पवित्र-स्थल, जहाँ कभी हमारे पूर्वज और पुरखे रहते आए थे। यदि हर भावना एक घटना है, तो ‘देशप्रेम’ एक चिरन्तन घटना है, हर पीढ़ी की आत्मा में नए सिरे से घटती हुई।
किन्तु वह कोई अमूर्त भावना नहीं; एक कविता की तरह वह किसी ठोस घटना अथवा अनुभव के धुँधले, टीसते, टिमटिमाते बिन्दु से उत्पन्न हो सकती है। अपनी बात कहूँ तो मुझे बचपन का वह क्षण याद आता है,, जब मैं माँ के साथ ट्रेन में बैठकर जा रहा था। कहाँ जा रहा था। कुछ याद नहीं, सिर्फ इतना याद है कि मैं सो रहा था, अचानक मुझे धड़धड़ाती-सी आवाज सुनाई दी; हमारी ट्रेन पुल पर से गुजर रही थी। माँ ने जल्दी से मेरे हाथ में कुछ पैसे रखे और मुझसे कहा कि मैं उन्हें नीचे फेंक दूँ। नीचे नदी में। नदी ? कहाँ थी वह ? मैंने पुल के नीचे झाँका, शाम के डूबते आलोक में एक पीली, डबडबायी-सी रेखा चमक रही थी। पता नहीं, वह कौन-सी नदी थी, गंगा, कावेरी या नर्वदा ? मेरी माँ के लिए सब नदियाँ पवित्र थीं।
यह मेरे लिए अपने देश ‘ भारत’ की पहली छवि थी, जो मेरी समृति में टँगी रह गई है....वह शाम, वह पुल के परे रेत के ढूह और डूबता सूरज और एक अनाम नदी...कहीं से कहीं की ओर जाती हुई ! मुझे लगता है, अपने देश के साथ मेरा प्रेम प्रसंग यहीं से शुरू हुआ था...उत्पीड़ित, उन्मादपूर्ण, कभी-कभी बेहद निराशापूर्ण; किंतु आज मुझे लगता है कि अन्य प्रेम-प्रसंगों की तुलना में वह कितनी छोटी-सी घटना से शुरू हुआ था, माँ का मुझे सोते में हिलाना, दिल की धड़कन, नदी में फेंका हुआ पैसा ....बस इतना ही

-निर्मल वर्मा (आदि, अन्त और आरम्भ )

No comments:

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...