“मैं कविता क्यों लिखता हूँ – मैंने कविता क्यों लिखी ? कहूं कि किसी लाचारी से लिखी । आज की परिस्थिति में कविता लिखने से सुखकर एवं प्रीतिकर कई काम हो सकते हैं, और मैं कविता न लिखना यदि हिंदी के आज के प्रतिष्ठित कवियों में एक भी ऐसा होता जिसकी कविता में कवि का व्यापक जीन दर्शन मिलता। अधिकांश पुरे कवि छंद और तुक की बाजीगरी के नशे में काव्य-विषय की एक-एक संकीर्ण परिधि में घिरकर व्यापक जीवन दर्शन के संघर्षों को भूल न गए होते और उन्हें कविता के विषय में से निकाल न देते ।”
-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (वक्तव्य – तीसरा सप्तक – पृष्ठ 200)
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