Sunday, May 19, 2013

Firaaq-on writing


‘यदि मैं दिल्ली या लखनऊ में रहा होता तो मेरी शायरी वहां नहीं पहुंचती जहां पहुंची है, क्योंकि दोनों जगहों पर परंपराओं का इतना जबर्दस्त बोझ है कि मेरी शायरी मर जाती.
-रघुवीर सहाय फिराक

Source: http://prabhatkhabar.com/node/180124

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