Friday, February 7, 2014

delhi-shalab sriram singh (दिल्ली-शलभ श्रीराम सिंह)


हाथी की नंगी पीठ पर
घुमाया गया दारा शिकोह को गली-गली
और दिल्ली चुप रही।

लोहू की नदी में खड़ा
मुस्कुराता रहा नादिरशाह
और दिल्ली चुप रही।

लाल किले के सामने
बंदा बैरागी के मुंह में डाला गया
ताजा लहू से लबरेज अपने ही बेटे का कलेजा
और दिल्ली चुप रही।
गिरफ्तार कर लिया गया
बहादुरशाह जफर को
और दिल्ली चुप रही।

दफा हो गए मीर और गालिब
और दिल्ली चुप रही।

दिल्लियां
चुप रहने के लिए होती हैं हमेशा
उनके एकांत में
कहीं कोई नहीं होता
कुछ भी नहीं होता कभी भी शायद।

-शलभ श्रीराम सिंह

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