लोकपाल बिल का इतिहास उतार-चढ़ाव वाला रहा है। इसे लोक सभा में आठ बार पेश किया गया और अनेक स्तरों पर इस पर विचार किया गया। कई बार इसे पारित किया गया और अनेक समितियों को भेजा गया। अन्तत:, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के दौरान, प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में गृह मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति ने बिल की जांच की और इसे गृह मंत्रालय को पारित करने पर विचार के लिए अपनी अनुशंसा के साथ भेज दिया।
भारत की जनता 1970 के दशक से लोकपाल बिल को वास्तविकता में बदलना चाहती रही है। जब श्री अन्ना हजारे ने एक मजबूत लोकपाल के लिए अपना आंदोलन शुरू किया तो उन्हें समाज के व्यापक वर्ग से सहयोग मिला। कोई भी जिम्मेदार और सक्रिय सरकार लोकपाल बिल के समर्थन में भारी जन आंदोलन की अनदेखी नहीं कर सकती। इसलिए सरकार ने पांच वरिष्ठ मंत्रियों को, श्री अन्ना हजारे द्वारा चुने गए पांच प्रतिनिधियों के साथ बैठकर इसे संसद में प्रस्तुत करने के लिए मसौदे को अंतिम रूप देने के लिए तैनात किया।।
लोकपाल बिल के लिए आंदोलन ने दिखाया है कि नागरिक समाज भी विधि निर्माण में पहल कर सकता है। भारतीय राजनीति में पहली बार, विधि निर्माण संघीय अथवा राज्य की विधायिका के विशेषाधिकार से बाहर निकला है। नागरिक समाज ने दिखा दिया है कि विधि निर्माण प्रक्रिया में उनकी महत्त्वपूर्ण एवं कारगर भूमिका है तथा इससे संसदीय राजनीति में एक नया आयाम जुड़ा है।
भारत की जनता 1970 के दशक से लोकपाल बिल को वास्तविकता में बदलना चाहती रही है। जब श्री अन्ना हजारे ने एक मजबूत लोकपाल के लिए अपना आंदोलन शुरू किया तो उन्हें समाज के व्यापक वर्ग से सहयोग मिला। कोई भी जिम्मेदार और सक्रिय सरकार लोकपाल बिल के समर्थन में भारी जन आंदोलन की अनदेखी नहीं कर सकती। इसलिए सरकार ने पांच वरिष्ठ मंत्रियों को, श्री अन्ना हजारे द्वारा चुने गए पांच प्रतिनिधियों के साथ बैठकर इसे संसद में प्रस्तुत करने के लिए मसौदे को अंतिम रूप देने के लिए तैनात किया।।
लोकपाल बिल के लिए आंदोलन ने दिखाया है कि नागरिक समाज भी विधि निर्माण में पहल कर सकता है। भारतीय राजनीति में पहली बार, विधि निर्माण संघीय अथवा राज्य की विधायिका के विशेषाधिकार से बाहर निकला है। नागरिक समाज ने दिखा दिया है कि विधि निर्माण प्रक्रिया में उनकी महत्त्वपूर्ण एवं कारगर भूमिका है तथा इससे संसदीय राजनीति में एक नया आयाम जुड़ा है।
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