खैर, अब में नौजवान तो नहीं रहा.…पत्रकार भी नहीं, हां थोड़े बहुत पन्ने जरुर काले कर लेता हूँ।
वह (लिखना) तो बस, जीने का बहाना है..... जैसे साँस लेते है जीने के लिए वैसे ही किताबें सांस लेना सम्भव बनाती है। मानो पीपल का पेड़ हो, जो दिल्ली के प्रदूषण में ऑक्सीजन देता है, तरोताज़ा बने रहने और फिर से एक नए मोर्चे पर जूझने के लिए डटे रहने का हौसला देता है।
फोटो: अक्षय नागदे
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