Saturday, February 8, 2014

Mat Kahu-Dhushyant Kumar (मत कहो-दुष्यंत कुमार)

 
मत कहो, आकाश में कुहरा घना है
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है

सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है

इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है

पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं
बात इतनी है कि कोई पुल बना है
रक्त वर्षों से नसों में खौलता है
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है

हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है

दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है
आजकल नेपथ्य में संभावना है
(मत कहो-दुष्यंत कुमार)

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