मानो सारे प्रतिमानों को ढ़हाने की होड़ सी लग गयी है, चहुंओर........अब तो ऐसा लगने लगा है कि मानो सब कुछ अकस्मात नहीं बल्कि किसी सुनियोजित योजना के तहत हो रहा है, वह बात अलग है कि असली कारण अभी भी अबूझ है........आज के स्थापित तंत्र को निकम्मा, असरहीन और निर्वीय घोषित करके भीड़ तंत्र को स्वीकृति दिलाना ही मानो एकमेव लक्ष्य हो..........सबको चोर बताकर, चोर-चोर का खेल कही देश को भारी न पड़े, अब इसकी चिंता सबको करनी होगी...........
सच, जितना समझो उतना कम.…
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