Wednesday, June 29, 2016
इस्तनाबूल हवाई अड्डे पर हमला_istanbul airport blast
व्यक्ति से समाज और प्रदेश से देश, चहुओर यही घटाघोप है।
Tuesday, June 28, 2016
बुद्धि की बलिहारी_Anti India feeling in young pakistani
पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री ने हिना रब्बानी खार ने हाल में एक इंटरव्यू में इस बात को स्वीकार किया कि "पाकिस्तानी बच्चों को घृणा के माहौल ने सही सोचने के नाकाबिल बनाया गया। हमारी बतौर किसी से नफरत करने वाले मुल्क की पहचान ने हिंदुस्तान के साथ दुश्मनी पैदा की है।"
यह तो जगजाहिर बात है पर मेरे मन में लाख टके का सवाल यह उठा कि हिंदुस्तान में ऐसे कौन-सी बात है कि कुछ लोग पाकिस्तान से ज्यादा हिंदुस्तान से नफरत करते हैं या सीधा कहूँ तो हिंदुस्तान से ज्यादा पाकिस्तान से प्यार करते हैं। ऐसी समझदार लोगों की जमात में देह से नहीं "बुद्धि से जीविका" कमाने वाले अधिक हैं।
फेल_पढ़ाई_fail_pass and life
फेल होना और पढ़ाई पूरी न करने का नसीहत देने से कोई संबंध नहीं होता। कोई चाह कर फेल नहीं होता न ही पढ़ाई अधूरी छोड़ता है। पर इसका मतलब वह अपने अनुभव न बांटे या दूसरों को बात न कहें। व्यक्ति का लिहाज उचित है पर विचार को लेकर वाद-विवाद भी संवाद का भी भाग है।
अगर हम बात कहते हैं तो फिर सुनने का भी लिहाज होना चाहिए। अगर कोई सही बात लिखी है, अपनी नज़र में तो फिर माफी का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता!
मेरा सात साल का बेटा ही मेरी बात से राजी नहीं होता सो मुझे अपनी बात मनवाने और मानने का कोई विचार कभी भी मन में नहीं रहता। बात करने से अच्छा होता है, यही शुभ है संवाद में। बाकि पढ़ना काफी कुहासा दूर करता है।
हम अपने विचार और व्यवहार की कसौटी स्वयं है सो अपने को ही कसौटी पर कसना ठीक होता है। सो खुश रहकर, खूब पढ़ना ही बहस करने के लिए तैयार करता है।
self projection of image_आभासी दुनिया की आत्म मुग्धता
आभासी दुनिया में अपनी पाक कला से घर की गैलरी से विहंगम दृश्य तक की आत्म छवि और पढ़ाई से लेकर पढ़ने की आत्म मुग्धता के भाव से ग्रसित मीडियाकार (या मेडिओकर, यह आप तय करें) भी अब छवि निर्माण के विरुद्ध लाल झण्डा बुलंद कर रहे हैं।
अगर वैचारिक रतौंदी की बात करेंगे तो कहेंगे मैं किस पर लिखूंगा, किस पर नहीं यह तो मैं ही तय करूंगा, आप नहीं।
आप पंत प्रधान पर कहे तो लोकतान्त्रिक देश का तकाजा और दूसरे उन पर कहें तो कर्ण की भांति पांत से ही बाहर निकालने का वादा!
बुद्धि से जीविका कमाने वाले ऐसे बुद्धिजीवि से तो बलिहारी!
पता नहीं क्यों अचानक यही पंक्ति याद आ गयी !
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।
Monday, June 27, 2016
परंपरा और भाषा से प्रकाश_rising light_tradition_langauage
मेरा कुछ नहीं, मैं तो बस बीन लेता हूँ फूल।
अपनी परंपरा और भाषा से।
नए अर्थ-रूप को समझने की कोशिश में।
अज्ञेय की कविता 'हरा अंधकार' के शब्दों में, "प्रकाश मेरे अग्रजों का है कविता का है, परम्परा का है, पोढ़ा है, खरा है : अन्धकार मेरा है, कच्चा है, हरा है।"
मेरी अल्प बुद्धि-ज्ञान से जो समझ पता हूँ, बता देता हूँ। न मेरा बुद्धिजीवी होने का दावा है न ही बनने की इच्छा। मन होता है सो पढ़ता हूँ, मर्जी होती है सो लिखता हूँ जो समझ में आता है सो साझा कर लेता हूँ। न इससे ज्यादा न इससे कम।
Saturday, June 25, 2016
Mera Dhan hai swadhin kalam_gopal singh nepali मेरा धन है स्वाधीन कलम_गोपाल सिंह नेपाली
राजा बैठे सिंहासन पर,
यह ताजों पर आसीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
जिसने तलवार शिवा को दी रोशनी
उधार दिवा को दीपतवार थमा दी लहरों को
ख़ंजर की धार हवा को दी
अग-जग के उसी विधाता ने,
अग-जग के उसी विधाता ने,
कर दी मेरे आधीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
रस-गंगा लहरा देती है
मस्ती-ध्वज फहरा देती है
चालीस करोड़ों की भोली किस्मत
पर पहरा देती है
संग्राम-क्रांति का बिगुल यही है,
यही प्यार की बीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
कोई जनता को क्या लूटे
कोई दुखियों पर क्या टूटे
कोई भी लाख प्रचार करे
सच्चा बनकर झूठे-झूठे
अनमोल सत्य का रत्नहार,
लाती चोरों से छीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
बस मेरे पास हृदय-भर है
यह भी जग को न्योछावर है
लिखता हूँ तो मेरे आगे
सारा ब्रह्मांड विषय-भर है
रँगती चलती संसार-पटी,
यह सपनों की रंगीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
लिखता हूँ अपनी मरज़ी से
बचता हूँ क़ैंची-दर्ज़ी से
आदत न रही कुछ लिखने की
निंदा-वंदन ख़ुदग़र्ज़ी से
कोई छेड़े तो तन जाती,
बन जाती है संगीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
तुझ-सा लहरों में बह लेता
तो मैं भी सत्ता गह लेता
ईमान बेचता चलता
तो मैं भी महलों में रह लेता
हर दिल पर झुकती चली मगर,
आँसू वाली नमकीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
India_Water_देश का जल
लियोनार्डो-द-विंसी ने एक बार कहा था ‘जल प्रकृति का वाहक है।’
पृथ्वी की 3/4 सतह पर पानी होने के बावजूद केवल एक प्रतिशत पानी पीने योग्य है तथा इसका बड़ा हिस्सा पहले ही दूषित हो चुका है। इसके साथ ही, नदियां सूख रही हैं तथा भूजल का अधिक दोहन हो रहा है। जहां पानी है, वहीं जीवन है तथा जहां पानी नहीं है, वहां जीवन नहीं है।
भारत में जल लोगों में श्रद्धा जगाता है। इसे ‘वरुण’ नामक देवता का अवतार माना गया है, जिन्हें जल के सभी स्वरूपों के देवता के रूप में पूजा जाता है। भारत में दुनिया की सतरह प्रतिशत जनता रहती है परंतु, यहां विश्व का केवल चार प्रतिशत पानी उपलब्ध है।
देश के अधिकांश हिस्सों में नियमित रूप से पानी को लेकर हालात चिंता का विषय है। ऐसे में पानी का संरक्षण, संतुलित वितरण तथा प्रयुक्त जल का फिर से उपयोग पर अनिवार्य रूप से ध्यान दिये जाने की जरूरत है।
हमें इसके लिए जल की उपलब्धता में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने की दिशा में प्रयास करने होंगे। इतना ही नहीं, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच जल के बंटवारे में समानता लानी होगी। आज समय की मांग है कि जल संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाने की जरूरत है।
आज एक भारी चुनौती रूप ले चुकी जल सुरक्षा की समस्या के भविष्य में और बढ़ने के आसार है। ऐसे समय में जब हम घटते जल संसाधनों तथा जल की बढ़ती मांग से जूझ रहे हैं, जल संरक्षण से ही लाभ हो सकता है। आज ‘जल को बचाना ही जीवन बचाना है’ नामक कहावत पहले से कहीं अधिक सटीक बैठती है।
देश की राष्ट्रीय जल नीति 2012 में जल संसाधनों के उपयोग में सुधार की जरूरत को स्वीकार किया गया था। जबकि इससे पहले जल का उपयोग और उसके प्रबंधन पर ध्यान दिए बिना उपलब्ध जल की मात्रा बढ़ाने पर ध्यान दिया गया। इसलिए अब ‘जल संसाधन विकास’ से 'जल संसाधन प्रबंधन’ की दिशा में बदलाव किया जाना जरूरी हो गया है।
जलवायु परिवर्तन का खतरा वास्तविक और सामयिक है। जल प्रवाह में बदलाव, भूमिगत जल में कमी, बाढ़ और सूखे की घटनाओं के बढ़ने और समुद्र के किनारों पर खारेपानी के घुसने के कारण जलवायु परिवर्तन का जल संसाधनों पर भारी दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका है। इस चुनौती का सामना जल प्रबंधन और संरक्षण से ही किया जा सकता है। 2011 में देश में राष्ट्रीय जल मिशन के तहत जल संरक्षण, जल की बर्बादी में कमी लाने और समतापूर्ण वितरण का काम शुरू किया गया था।
भारत में खेती में सबसे अधिक पानी का उपयोग होता है। तेजी से हुए शहरीकरण और शहरों में पानी की मांग ने पानी को गाँव से शहरी नागरिकों की ओर भेजने के लिए मजबूर कर दिया है, जिससे गाँव और शहर में होड़ पैदा हुई है। जल संसाधनों में बदलाव न होने के कारण भविष्य में पानी के उपयोग को लेकर गाँव और शहर में प्रतिस्पर्धा के बढ़ने की संभावना है। इस परिस्थिति के समाधान के लिए दोनों के बीच पानी के उचित बंटवारे की जरूरत है।
हमारे देश में कृषि के लिए जल की सबसे ज्यादा मांग है। सबको अन्न उपलब्ध करवाने के लिए खेती में उचित जल प्रबंधन आवश्यक है। हमें अपनी सिंचाई प्रणाली में जल के उचित प्रयोग को प्रोत्साहन, उपयोग किए गए पानी को संशोधित करके दोबारा उपयोग में लाने के प्रयासों को बढ़ाना होगा।
देश में घटते भूजल के स्तर को रोकने के लिए सही प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना होगा। मौजूदा ग्रामीण विकास योजनाओं के साथ जोड़कर वर्षा जल संचयन को लोकप्रिय बनाना होगा। साथ ही मिट्टी में नमी बढ़ाना, नदी-तालाबों के किनारे पेडों की कटाई में कमी लाना और पानी की उत्पादकता में सुधार की दिशा में कोशिश करनी होगी।
उपयोग योग्य जल एक दुर्लभ वस्तु है। इसको देखते हुए पानी की कीमत इस तरह रखनी होगी कि समाज में पानी की बचत के लिए प्रोत्साहन और बर्बादी के लिए दंड की व्यवस्था की भावना हो।
आधुनिक विकास के हिसाब से पूरी दुनिया में सुरक्षित पीने के पानी की व्यवस्था एक गंभीर पहल बन चुकी है। मनुष्यों की काफी बड़ी जनसंख्या की, इस बुनियादी जरूरत तक पहुंच नहीं हो पाई है। सुरक्षित पेयजल तक गरीबों की पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए बाजार, प्रौद्योगिकी और सरकार को काफी प्रयास करने होंगे। देश में सुरक्षित पेयजल की सामूहिक खपत को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय संस्थानों की भी मदद लेनी होगी।
भारत में पानी को लेकर मौजूदा कानूनी ढांचा इस जटिल जल परिस्थिति से निबटने के लिए असमान तथा अपर्याप्त है। पानी को लेकर सरकारी नीतियों और नियमों को स्पष्ट और सारगर्भित बनाने की भी जरूरत है। तभी भारत में मुंह बाएँ खड़ा पानी का संकट को कम किया जा सकता है।
महात्मा गांधी का कहना था, ‘धरती मां के पास हमारी जरूरत पूरा करने के लिए पर्याप्त है परंतु लालच के लिए नहीं।’ वह एक ऐसा हिंद स्वराज स्थापित करना चाहते थे जो ‘लालच से जरूरत की ओर’ के सिद्धांतों पर आधारित हो। आज प्रकृति पर विजय से हटकर प्रकृति से सहयोग पर आधारित सोच होने की जरूरत है।
Wednesday, June 22, 2016
Hindu_Vivekanand_हिंदु_स्वामी विवेकानंद
मैं समझता हूँ, इसका उद्देश्य सभी को अपनाना है, किसी का तिरस्कार करना नहीं। मैं कट्टरता वाली निष्ठा भी चाहता हूँ और भौतिकतावादियों का उदार भाव भी चाहता हूँ। हमें ऐसे ही हृदय की आवश्यकता है जो समुद्र सा गंभीर और आकाश सा उदार हो। हमें संसार की किसी भी उन्नत जाति की तरह उन्नतिशील होना चाहिए और साथ ही अपनी परम्पराओं के प्रति वहीं श्रद्धा तथा कट्टरता रखनी चाहिए, जो केवल हिंदुओं में ही आ सकती है।
-स्वामी विवेकानंद
Saturday, June 18, 2016
Wednesday, June 15, 2016
Third city of Delhi_तुगलकाबाद_दिल्ली का तीसरा किलेबंद शहर
गयासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली में एक नए राजवंश की नींव डाली परंतु यह कहना भूल है कि तुगलक किसी नस्ल अथवा वंश का नाम था। गयासुद्दीन का नाम गाजी तुगलक अथवा गाजी बेग तुगलक था। इस कारण इतिहास में उसके उत्तराधिकारियों को भी तुगलक पुकारा जाने लगा और उसका वंश तुगलक वंश कहलाया।
मुस्लिम इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार, उसका पिता मलिक तुगलक बलबन का एक तुर्की गुलाम था जिसने एक हिंदू जाट स्त्री से विवाह किया था। उनका पुत्र गाजी तुगलक था जो गयासुद्दीन तुगलक (1321-1325), के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। खिलजी वंश के खुसरव शाह की हत्या करके उसने दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर लिया और सुल्तान बना।
तुगलक वंश के ग्यारह बादशाहों में से केवल पहले तीन ही वास्तुकला में दिलचस्पी रखते थे और इनमें से हरेक ने दिल्ली में एक नया राजधानी का नगर जोड़ा।
कहा जाता है कि गयासुद्दीन तुगलक ने यह स्थान अलाउद्दीन खिलजी, जिसकी सेना में वह सेनापति था, के साथ यात्रा के दौरान देखा था। इस स्थान के महत्व की तत्काल अनुभूति करते हुए गयासुद्दीन ने कहा, मेरे मालिक, यह वाजिब होगा अगर यहां एक नगर बसाया जाए। सुल्तान इससे प्रभावित नहीं हुआ था और उसने जवाब दिया, जब तुम सुल्तान बनोगे, तब बनाना।
वर्षों बाद जब गयासुद्दीन दिल्ली का सुल्तान बना, उसने इसी पहाड़ी क्षेत्र को अपने शासन का केन्द्र बनाने का निर्णय लिया। यहां उसने तुगलकाबाद का सुन्दर शहर बसाया। सिरी के उपरांत बना ऊंची बुर्जों और 13 दरवाजों वाला यह किलेबंद नगर तुगलकाबाद, जो आज भी अपने पूर्व स्थान पर स्थित है, दिल्ली का तीसरा नगर था।
तुगलकाबाद का निर्माण पुराने शहर के दक्षिण पूर्व में सहज सुरक्षित ऊंचे क्षेत्र पर स्थापित किया गया था। जबकि जहांपनाह का निर्माण पुराने शहर किला राय पिथौरा और सीरी के बीच के रिहायशी क्षेत्र को दीवारों के भीतर लाने के लिए किया गया था।
सुनसान पहाड़ियों पर खड़ा भूरे रंग के अनगढ़े पत्थर की ढलानदार दीवारों वाला किला तुगलकाबाद, जहां इसकी स्थिति को एक प्राकृतिक लाभ प्राप्त है, अपने नगर और दुर्ग सहित वास्तुकला संबंधी महत्वाकांक्षाओं वाले एक महानगर के बजाय एक गढ़ के रूप में बनवाया था। दूसरे शब्दों में उच्च कोटि की स्थापत्य कला से युक्त नगर की अपेक्षा कहीं सामरिक केन्द्र था।
तुगलकाबाद का किला कुतुब-बदरपुर सड़क पर कुतुब मीनार से लगभग आठ किलोमीटर पर एक चट्टानी पहाड़ी पर स्थित है। यह नगर दिल्ली का तीसरा नगर है जिसमें 65 किलोमीटर के परिणाम सहित योजना में मोटे तौर पर अष्टभुजाकार की 10 से 15 मीटर ऊंचे अनगढ़े पत्थरों से निर्मित दीवारों में अन्तरालों पर बुर्ज और फाटक है।
किला शब्द अरबी भाषा का है, जिसका अर्थ है-लड़ाई के समय रक्षा का एक सुरक्षित स्थान। इसी से किलेदार और किलेबंदी जैसे शब्द बने हैं। किले के लिए संस्कृत का शब्द है दुर्ग, जो दुर्गम शब्द से बना है, जिसका अर्थ है जहां सहजता से पहुंचने का रास्ता न हो।
तुगलकाबाद को मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया था। कुतुब-बदरपुर सड़क से वर्तमान प्रवेश द्वार के पूर्व में ऊंची दीवारों और बुर्जों सहित एक आयताकार क्षेत्र किले का काम देता था। इसी प्रकार अनगढ़े पत्थरों की दीवारों और बुर्जों से घिरे पश्चिम में बिलकुल ही निकट विस्तृत क्षेत्र में महल बने हुए हैं।
इसके आगे उत्तर में शहर था जो अब घरों के खंडहरों से पहचाना जाता है। शहर की गलियां जिनके चिन्ह अब भी देखे जा सकते हैं, जो एक तरफ फाटकों से लेकर सामने की ओर के फाटकों तक एक समकोणात्मक रूप में जाती थीं। दुर्ग के अहाते के भीतर विजय मंडल के नाम से विख्यात एक बुर्ज है और अनेक बड़े बड़े कमरों के अवशेष हैं, जिनमें एक लम्बा भूमिगत मार्ग भी शामिल है।
तुगलकों की इमारतों की विषेषताएं हैं, भूरे पत्थर के सीधे साधे और कठोरतल, बड़े-बड़े कमरों के ऊपर मेहराबी छतों का होना और पुश्तेदार ढालू दीवारों और मुख्य रूप से कोनियों पर बुर्ज चार केन्द्रित मेहराबें और खुले भागों पर सरदलों का होना। मिट्टी या ईटों से बनी मोटी दीवारों के लिए बाहरी और ढालू को बनाना आवश्यक था परन्तु वह पत्थर की दीवार के लिए जरूरी नहीं था। इस पद्धति को तुगलकों ने सम्भवतः सिंध, पंजाब या अफगानिस्तान से लिया था जहां गारे या ईटों का इस्तेमाल होता था।
तुगलकाबाद का केवल परकोटा ही अब जैसे तैसे बचा हुआ है। सन् 2001 में भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने तुगलकाबाद में नए सिरे से उत्खनन करवाया था।
तुगलकाबाद की नियति यही थी कि उसके निर्माण के शीघ्र बाद ही उजड़ गया। कहा जाता है कि गयासुद्दीन को सूफी दरवेश निजामुद्दीन औलिया ने श्राप दिया था। गयासुद्दीन तुगलक चाहता था कि लोग आ-आकर उसे सलाम बजाते रहें और उसके काम की तारीफ करते रहें। लोग ऐसा किया भी करते थे, सिवाय ख्वाजा के। गयासुद्दीन ने ख्वाजा से इस बात की जवाबदेही मांगी।
तब ख्वाजा ने भविष्यवाणी की कि जल्द ही तुगलकाबाद का यह शहर बियावान बंजर में तब्दील हो नेस्तनाबूद हो जाएगा और यहां सिर्फ गूजर डकैतों का वास होगा। जब यह खबर सुल्तान तक पहुंची तो उसने ख्वाजा निजामुद्दीन को सबक सिखाने की ठान ली।
देश के पूर्वी क्षेत्रों में सुल्तान ने जहां जहां आक्रमण किया, उसकी जीत हुई। गयासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली पहुंचने में थोड़ी ही देर बाकी थी कि उसने हुक्म जारी किया कि निजामुद्दीन की दरगाह को तबाह कर मिट्टी में मिला दिया जाय। जब शहर कोतवाल ने निजामुद्दीन को पहुंच कर यह शाही ऐलान बताया तो बस इतना कहा, “हुनूज दूर अस्त” (अभी दिल्ली दूर है)।
कोतवाल जैसे ही शहर पहुंचा, उसे खबर मिली कि सुल्तान के साथ कोई दुर्घटना हो गई है। अगले दिन संदेषवाहक सुल्तान की मौत की खबर लेकर पहुंचा कि ज बवह किसी फाटक की मेहराब टूटकर उसके ऊपर गिर पड़ी और सुल्तान की मौत हो गई। यह सन् 1325 ईस्वी की बात है। इस तरह ख्वाजा की भविष्यवाणी सच हो गुजरी।
तुगलकाबाद का विशाल किला जो तुगलक ने बनवाया था, शीघ्र ही सुनसान-बियाबान में बदल गया। यमुना नदी जो कभी इसकी प्राचीरों को छूती हुई बहा करती थी, अपना रूख बदलकर दूर चली गई। किले के सारे कुएं सूखकर जलविहीन हो गए। अब यहां सिर्फ सियारों, चमगादड़ों, उल्लुओं और गूजरों का बसेरा रह गया। कभी सुनहरी दिखनेवाली इसकी दीवारें भरभराकर ढह गई। बची रही सिर्फ गयासुद्दीन तुगलक की मजार, मानो अल्लाह ने यह भी चाहा हो कि वह अपनी आंखों अपने वैभव के सपनों के ध्वंसावशेष देखता रहे।
एक अन्य ऐतिहासिक आख्यान के अनुसार, उसकी (गयासुद्दीन तुगलक) हत्या उसके पुत्र और उत्तराधिकारी मुहम्मद बिन तुगलक ने की। 1321 में गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के साथ ही तुगलकाबाद का अल्पकालिक वैभव भी समाप्त हो गया।
इब्न बतूता के अनुसार, जब सुल्तान गयासुद्दीन बंगाल में था तभी उसे उलूगखां (मुहम्मद बिन तुगलक का सुल्तान बनने से पहले का नाम) के चिंताजनक व्यवहार के समाचार प्राप्त हुए। उसे सूचना मिली कि वह अपने समर्थकों की संख्या बढ़ा रहा है और शेख निजामुद्दीन औलिया का चेला बन गया है। इस शेख के सुल्तान के संबंध अच्छे न थे। सुल्तान ने उलूगखां और निजामुद्दीन औलिया को दिल्ली पहुंचने पर दंड देने की धमकी दी, जिसके बारे में औलिया ने कहा कि "दिल्ली अभी बहुत दूर" है।
सुल्तान शीघ्रता से बंगाल से वापिस लौटा और उलुगखां ने उसके स्वागत के लिए नवीन राजधानी तुगलकाबाद से तीन या चार मील दूर अफगानपुर नाम गांव में एक लकड़ी का महल बनवाया। वह महल अहमद ऐयाज (जिसे बाद में उलूगखां उर्फ सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने अपना वजीर बनाया) ने इस प्रकार बनवाया कि हाथियों के द्वारा एक विशेष स्थान पर धक्का लगने से वह गिर सकता था। भोजन के बाद, उलुगखां ने सुल्तान से बंगाल से लाए गए हाथियों के प्रदर्शन की प्रार्थना की। सुल्तान की आज्ञा से वे हाथी प्रदर्शित किए गए और उनका धक्का महल को लगा तो वह गिर गया और सुल्तान तथा उसका छोटा पुत्र महमूद उसमें दबकर मर गए। उलूगखां ने मलबा हटवाने में भी जानबूझकर देर की और जब सुल्तान व उसके पुत्र की लाशें उसमें से निकली तो सुल्तान अपने पुत्र पर इस प्रकार झुका हुआ पाया गया जैसे वह अपने पुत्र की रक्षा करना चाहता था।
इब्न बतूता को इस घटना के बारे में शेख रूकनुद्दीन ने बताया था जो उस समय महल में था और जिसे उलूगखां ने नमाज पढ़ने के बहाने उस समय उस स्थान से हटा दिया था। इस तरह तीसरी दिल्ली के सुलतान का गयासुद्दीन तुगलक का दर्दनाक अंत हुआ।
Tuesday, June 14, 2016
Sardar Patel_Newspapar_सरदार पटेल-समाचार पत्र
जिस समाचार पत्र का जन्म स्वतंत्र भारत में होता है, उसे जन्म से ही तंदुरुस्त होना चाहिए। गुलामी की हालत में भारत को मुक्त करने का जो समय था, उस समय समाचार पत्र का जो धर्म था और उसे जो कार्य था, उसमें और आज के समय में और धर्म में जमीन-आसमान का फर्क है। एक जिम्मेदार पत्रकार की कलम जनता पर जबरदस्त असर डाल सकती है। जितना जनता की भलाई के लिए डाल सकती है, उतना बुराई के लिए भी डाल सकती है।
-सरदार वल्लभभाई पटेल,
(आज का धर्म, 11 अगस्त 1948)
सरदार श्री के विशिष्ट और अनोखे पत्र-1 पुस्तक से
Sunday, June 12, 2016
Quran In Pak Schools Become Mandatory_पाकिस्तानी स्कूलों में कुरान पढ़ना लाजिमी
पाकिस्तानी स्कूलों में कुरान पढ़ना लाजिमी हुआ
मोहम्मद अली जिन्ना के पाकिस्तान ने क़ुरान को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का फैसला किया है।
अब पाकिस्तान में सभी स्कूल और कॉलेज (पहली कक्षा से लेकर 12 कक्षा तक) में क़ुरान की पढ़ाई अनिवार्य होगी। पहली कक्षा से लेकर पाँचवी कक्षा तक के छात्रों को एक विषय के हिसाब से अनिवार्य रूप से अरबी में कुरान कंठस्थ करना होगा।
जबकि कक्षा छह से बारहवीं के छात्रों को उर्दू माध्यम वाली कुरान से पढ़ाया जाएंगा।
क़ुरान की पढ़ाई के लिए 15 मिनट का समय निर्धारित किया गया है।
Tuesday, June 7, 2016
english dominance in hindi cinema_हिन्दी सिनेमा के फिरंगी कलाकार
दुखद सत्य
एक सुबह गुलजार के घर पर चाय पीते समय उन्होंने मुझे बताया कि उर्दू शायर कैफी आजमी की बेटी और जावेद अख्तर की पत्नी फिल्म अभिनेत्री शबाना उर्दू लिपि नहीं पढ़ सकती है। आज उनके संवाद (बाकी सभी खान अभिनेताओं के भी) रोमन लिपि में ही लिखे जाते हैं।
-आकार पटेल
(उर्दू की जादुई लयात्मक्ता, मिंट, 26 मई 2011)
Tragic truth!
One morning over a cup of tea at his house, Gulzar told me that film actor Shabana, daughter of poet Kaifi Azmi and wife of poet Javed Akhtar, couldn’t read the Urdu script. Her dialogues (and those of all the four Khans) are today written in Roman.
-Aakar Patel
(The magical lyricism of Urdu, Mint, May 26 2011)
Sunday, June 5, 2016
Kerala Minister E P Jayarajan-Muhammad Ali gaffe_मोहम्मद अली
लो, कर लो बात।
माकपा की केन्द्रीय समिति के सदस्य और केरल के खेल मंत्री ई पी जयराजन का कहना है कि मुहमद अली के देहांत की सूचना के विषय में समाचार चैनल ने विषय के बारे में सूचित नहीं किया था।
सो चूक हो गई।
सही में, पत्रकार ने भरे देश में द्रौपदी बना दिया।
पत्रकारिता बहुत बलिदान ही नहीं, राजस्थानी मुहावरे में कहें तो "अपने सिर पर गलती ओढ़ना भी मांगती है"।
बक़ौल जनसत्ता, "माकपा के वरिष्ठ नेता जयाराजन ने मनोरमा न्यूज से बातचीत में कहा, “अली केरल के जाने-माने खिलाड़ी थे और उन्होंने केरल के लिए गोल्ड मेडल जीत कर राज्य का नाम रौशन किया।”
dalit of facebook_आभासी दुनिया का अछूत
आज एक कामरेड मित्र, बातों ही बातों में इतने खफ़ा हो गएँ कि मुझे अपनी आभासी दुनिया की 'जमात' से ही बाहर कर दिए।
बात, दूसरे मित्र से शुरू हुई थे तो दुकड़ी से तिकड़ी बन गई। बस तर्क से तर्क और फिर मेरा तर्क लगा कुतर्क।
फ़ेसबुक पर मित्रों की सूची से बहिष्कृत किए जाने का मेरा पहला अनुभव है।
संयोग है कि दोनों मित्र ब्राह्मण है, सो आज से मैं भी एक के लिए 'अछूत' हुआ, चाहे आभासी दुनिया में ही सही। अब लग रहा है कि समाज की पांत से बाहर किए जाने का क्या अर्थ होता है।
ज्ञान पर किसी एक का एकाधिकार नहीं सो बहिष्कार करने वाले को उसका 'कारण' भी बताना चाहिए। इससे किसी की मित्रों की संख्या भी नहीं बदेगी क्योंकि उसे स्वीकारने से पूर्व तिरिस्कृत करने का कारण उजागर करना होगा।
अब मेरे मित्र कहेंगे कि मैं बंडल मार रहा हूँ नहीं भाई मैं सही कह रहा हूँ।
मैंने यह बात महसूस की की है कि मेरे अकेले यही कामरेड मित्र अपवाद नहीं है, एक और पढ़े-लिखे ब्राह्मण मित्र है, वे भी 'लाल झंडे' के अपकर्म को स्वीकारने की बजाए 'भगवा रंग' के दोष-अवगुण गिनने लग जाते हैं।
सो यह व्यक्ति का आचार नहीं, विचार का व्यवहार है।
मीरा का प्रसिद्ध कृष्ण भजन है, प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो |समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो ||
एक लोहा पूजा मे राखत, एक घर बधिक परो |सो दुविधा पारस नहीं देखत, कंचन करत खरो ||
एक नदिया एक नाल कहावत, मैलो नीर भरो |जब मिलिके दोऊ एक बरन भये, सुरसरी नाम परो ||
एक माया एक ब्रह्म कहावत, सुर श्याम झगरो |अबकी बेर मोही पार उतारो, नहि पन जात तरो ||
मजेदार है, दोनों बिहारी मित्रों में से एक अभी मेरे प्रदेश राजस्थान में ही है।
फोटो: Eklavya Practicing Archery by Y. G. Srimati - c1945-46
Delhi Floods_Amitav Ghosh_The Great Derangement
When gravity became a wheel
On the afternoon of 17 March 1978, the weather took an odd turn in north Delhi. Mid-March is usually a nice time of year in this part of India: the chill of winter is gone and the blazing heat of summer is yet to come; the sky is clear and the monsoon is far away. But that day dark clouds appeared suddenly and there were squalls of rain. Then followed an even bigger surprise: a hailstorm.
I was then studying for an MA at Delhi University while also working as a part-time journalist. When the hailstorm broke, I was in a library. I had planned to stay late, but the unseasonal weather led to a change of mind and I decided to leave. I was on my way back to my room when, on an impulse, I changed direction and dropped in on a friend. But the weather continued to worsen as we were chatting so after a few minutes I decided to head straight back by a route that I rarely had occasion to take.
I had just passed a busy intersection called Maurice Nagar when I heard a rumbling sound somewhere above. Glancing over my shoulder I saw a grey, tubelike extrusion forming on the underside of a dark cloud: it grew rapidly as I watched, and then all of a sudden it turned and came whiplashing down to earth, heading in my direction.
Across the street stood a large administrative building. I sprinted over and headed towards what seemed to be an entrance. But the glass-fronted doors were shut, and a small crowd huddled outside, in the shelter of an overhang. There was no room for me there so I ran around to the front of the building. Spotting a small balcony, I jumped over the parapet and crouched on the floor.
The noise quickly rose to a frenzied pitch, and the wind began to tug fiercely at my clothes. Stealing a glance over the parapet, I saw, to my astonishment, that my surroundings had been darkened by a churning cloud of dust. In the dim glow that was shining down from above, I saw an extraordinary panoply of objects flying past — bicycles, scooters, lamp posts, sheets of corrugated iron, even entire tea stalls. In that instant, gravity itself seemed to have been transformed into a wheel spinning upon the fingertip of some unknown power.
I buried my head in my arms and lay still. Moments later the noise died down and was replaced by an eerie silence. When at last I climbed out of the balcony, I was confronted by a scene of devastation such as I had never before beheld. Buses lay overturned; scooters sat perched on treetops; walls had been ripped out of buildings, exposing interiors in which ceiling fans had been twisted into tulip-like spirals. The place where I had first thought to take shelter, the glass-fronted doorway, had been reduced to a jumble of jagged debris.
The panes had shattered and many people had been wounded by the shards. I realized that I too would have been among the injured had I remained there. I walked away in a daze…
The headlines of 19 March read, ‘A Very, Very Rare Phenomenon, Says Met Office’: ‘It was a tornado that hit northern parts of the Capital yesterday — the first of its kind. . . . According to the Indian Meteorological Department, the tornado was about 50 metres wide and covered a distance of about five km in the space of two or three minutes.’
This was, in effect, the first tornado to hit Delhi — and indeed the entire region — in recorded meteorological history. And somehow I, who almost never took that road, who rarely visited that part of the university, had found myself in its path.
Only much later did I realize that the tornado’s eye had passed directly over me. It seemed to me that there was something eerily apt about that metaphor: what had happened at that moment was strangely like a species of visual contact, of beholding and being beheld.
Open Letter to Mukul Dwivedi_मुकुल द्विवेदी के नाम मीडिया की पाती
चिट्ठी न कोई संदेश...
मथुरा के शहीद एसपी मुकुल द्विवेदी के नाम मीडिया की पाती की प्रतीक्षा है!
आशा है महजब-जाति-सेकुलर सोच के नाम पर बैरंग नहीं लौटेगी!
बस स्वजातीय होने के नाम पर पाती लिखने वाला आलोचना से घबरा गया तो अलग बात है।
वैसे अब मुआवजे की राशि भी सेकुलर न होकर राजनीति में जाति-महजब की जरूरत या मजबूरी के सच को खुले में आम कर देती है।
पत्रकारिता की जाति_जातिगत पत्रकारिता_Casteist Media_Media and Caste
यूपी में जेपी की माया में पिछड़ों-दलितों के लिए नौकरियों की बहार आ गई थी!
मीडिया में दलित के संपादक बनते ही अचानक पिछड़ों-वंचित समाज की पत्रकारों के लिए नौकरियों की बाढ़ आ गई!
पत्रकारिता में नया शगल चला है, जाति को कोसने का!
जाति है कि जाती नहीं।
खुद को वंचित, दलित और अल्पसंख्यकों का हितैषी बताने और संवेदना जताने वाले झंडाबदार पत्रकार अपनी जाति का खुलासा नहीं करते!
न ही यह बताते है कि खुद उन्होने कहाँ ब्याह किया?
आखिर शहर में रोटी बेशक जाति के घेरे से बाहर हो गयी हो पर बेटी तो अभी भी घेरे में ही है।
फिर इस घेरे में हिन्दू, मुसलमान और क्रिस्तान सभी हैं।
मोर्चा बराबरी का तभी हो जब दूसरे को सार्वजनिक रूप से जातिवादी नाम से पुकारने और टप्पा लगाने वाले बड़का प्रगतिशील पत्रकार अपनी जाति और विवाह का भी खुलासा करें।
नहीं तो मेरा अपना अनुभव है कि आईआईएमसी में साथी रहा एक ऊंची जाति वाले अब नामचीन टीवी पत्रकार को प्रगतिशील, वंचित, दलित और अल्पसंख्यकों का मसीहा बताकर ऐसे ही ताल ठोकने वाले हल्ला-ब्रिगेड ने नाहक ही दूसरों की नज़र में खलनायक बना दिया है।
ऐसे में जातिगत विमर्श बढ़कर अंतर-जाति यहाँ तक कि वर्ण-संकर जाति तक पहुंचेगा और फिर गोत्र तक!
Farewell_अलविदा प्यार
एक दिन हो सकता है कि हमें वह जगह मिले, जहां हम दोनों मिल सकें।
जहां हम अपने ख्वाबों को बदलाव की धारा के बीच थाम पाएंगे।
सो, तुम आखिरी बार मेरे लिए यह सोच कर मुस्कुराओं कि हम दोबारा मिलेंगे।
तब तक मुझे जिंदगी में तुम्हारी कमी बेहद खलेगी।
-आर एम ड्रेक
फोटो: The Farewell_Eugene De Blaas Italian 1843_1932
Saturday, June 4, 2016
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First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान
कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...