
1857 पर सबसे पहले लिखी गई जॉन काये की पुस्तक का शीर्षक था, ‘ए हिस्टरी ऑफ द सिपॉय वार इन इंडिया 1857-8′| जॉन काये के आकस्मिक निधन के बाद जॉर्ज मालेसन ने उसी पुस्तक के जो अगले खंड प्रकाशित किए, उनका नाम रख दिया, ‘हिस्टरी ऑफ द इंडियन म्यूटिनी’| काये ने जिसे युद्घ कहा था, उसे मालेसन ने म्युटिनी बना दिया| यही शब्द म्युटिलेट होता हुआ भारतीय इतिहासकारों की कलम से भी चिपक गया| चाहे डॉ. रमेशचंद्र मजूमदार हों, डॉ. शशिभूषण चौधरी हों या डॉ. सुरेन्द्रनाथ सेन हों, लगभग सभी भारतीय इतिहासकारों ने 1857 को भारत का स्वाधीनता-संग्राम कहने में कुछ न कुछ संकोच दिखाया है|
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