अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दहुजवनकृ-शानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुतिप्रियभक्तं वातजां नमामि।।
दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस में स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर राजधानी के पौराणिक मंदिरों में एक है। आम लोगों की श्रद्धा का केंद्र यह मंदिर दक्षिण मुखी है, जो हिंदू धर्म में शुभ माना जाता है ।
हिन्दू मान्यता के अनुसार पांडवों में द्वितीय भीम को हनुमान जी का भाई माना जाता है। दोनों ही वायु-पुत्र कहे जाते हैं। इंद्रप्रस्थ की स्थापना के समय पांडवों ने इस शहर में पांच हनुमान मंदिरों की स्थापना की थी। [4][5] ये मंदिर उन्हीं पांच में से एक है।
मान्यता अनुसार प्रसिद्ध भक्तिकालीन संत तुलसीदास जी ने दिल्ली यात्रा के समय इस मंदिर में भी दर्शन किये थे। तभी उन्होंने इस स्थल पर ही हनुमान चालीसा की रचना की थी। तभी मुगल सम्राट ने उन्हें अपने दरबार में कोई चमत्कार दिखाने का निवेदन किया। तब तुलसीदास जी ने हनुमान जी की कृपा से सम्राट को संतुष्ट किया। सम्राट ने प्रसन्न होकर इस मंदिर के शिखर पर इस्लामी चंद्रमा सहित किरीट कलश समर्पित किया। इस कारण ही अनेक मुस्लिम आक्रमणों के बावजूद किसी मुस्लिम आक्रमणकारी ने इस इस्लामी चंद्रमा के मान को रखते हुए कभी भी इस मंदिर पर हमला नहीं किया। वर्तमान इमारत आमेर के राजा मान सिंह प्रथम (१५४०-१६१४) ने मुगल सम्राट अकबर के शासन काल में बनवायी थी। इसका विस्तार महाराजा जयसिंह द्वितीय (१६८८-१७४३) ने जंतर मंतर के साथ ही करवाया था। दोनों इमारतें निकट ही स्थित हैं। इस मंदिर में एक महंत ध्यानचंद शर्मा की समाधि, जिनका वर्ष 1742 में देहांत हुआ था, है।
80-90 साल पहले भी पुरानी दिल्ली के लोग इस मंदिर में हनुमानजी की पूजा करने आते थे। उस समय पुरानी दिल्ली से लेकर हनुमान मंदिर के बीच में जंगल था। इस जंगल के साथ कुछ गांव भी थे। माधोगंज, जयसिंहपुरा और राजा का बाजार में लोगों की भीड़ दिखती थी। लेकिन शाम में सन्नाटा छा जाता था, क्योंकि जंगली जानवर रात में परेशान कर सकते थे। जंगल में कीकर के पेड़ थे। इसे रिज क्षेत्र कहा जाता था। यहां गीदड़, जंगली शूकर आदि रहते थे। तीतर चिड़ियां भी खूब थीं। गांव के लोग उनका शिकार करने यहां आते थे।
इस मंदिर की तमाम विशेषताओं में सबसे उल्लेखनीय तथ्य यह है कि ये हनुमानजी के बाल्यकाल को दर्शाने वाले देश का सबसे प्रमुख मंदिर है। यहां बाल हनुमान के एक हाथ में खिलौना और दूसरा हाथ उनके सीने पर है। ये महावली वीरवर बजरंगबली का ही प्रताप है कि इस मंदिर में 1 अगस्त 1964 से आज तक लगातार श्री राम जयराम जय जय राम का जाप जारी है। जिसके लिए इसे गिनीज बुक में भी शामिल किया गया है।
शिल्पकला की दृष्टि भी ये मंदिर बेहद उत्कृष्ट कोटि का है। इसके मुख्य द्वार का वास्तुशिल्प रामायण में वर्णित कला के अनुरूप है। मुख्य द्वार के स्तंभों पर संपूर्ण सुंदरकांड की चौपाइयां खुदी हुई हैं।
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