Monday, April 1, 2013
Ghalib:Ghazal
ज़ुल्मतकदे में मेरे, शबे गम का जोश है
इक शमा है दलीले सहर, सो खमोश है
ने मुश्दयेविसाल, ना नज़ाराये जमाल
मुद्दत हुई कि आश्तिए चश्मओ गोश है
दागे फिराके सोह्बते शब की जली हुई
इक शमा रह गई है, सो वो भी खामोश है
आते हैं गैब से ये मजामी ख्याल में
ग़ालिब सरीरे खामा, नवाये सरोश है
(शब्दार्थ : ज़ुल्मतकदे = अँधेरा घर, दलीले सहर = सुबह का प्रमाण, ने मुश्दयेविसाल = प्रिय मिलन का शुभ संदेश, आश्तिए चश्मओ गोश = आंखों और कानों के बीच की संधि, दागे फिराके सोह्बते शब = रात की महफ़िल के विरह का दाग, गैब = आकाश, सरीरे खामा = कलम की आवाज़)
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