Thursday, April 18, 2013

Language: Self to Livelihood

असली बात यह है कि आखिर हम भी तो हिंदी के कर्ज से मुक्त हो । आखिर इसकी वजह से ही तो हम अपनी रोजी रोटी कमा रहे है इज्जत से ।
आप कहीं से कहीं निकल जाते है, आखिर मैंने भी लिखने का काम,थक-हारकर, नौकरी से उपजी एकरसता से से बचने के लिए शुरू किया था, जो अब कुछ दिखने लगता है । मैं इसे ऐसे लेता हूं कि हीरा जमीन के नीचे भी हीरा ही है, जौहरी की दुकान में भी और सुंदरी के गले में भी । बस समय का फेर है सो निरंतर अपने काम में लगे रहना ही सबसे बेहतर है । ।
हौसला बढ़ता है नहीं तो लगता है कि बस यू ही अपनी खब्त में रात को काली किए जा रहा हूं, शमशेर के शब्दों मे कहें तो बात बोलेगी मैं नहीं, भेद खोलेगी बात ही ।
सो तो है । जब तक आप पर किसी का ध्यान नहीं होता है तो कोई बात नहीं, ध्यान में आने पर आपको भी ध्यान रखना होता है ।

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