इक्कीसवीं सदी का पहला दशक अब लगभग समाप्ति पर है। पिछले दस वर्षों में हुए परिवर्तनों पर एक उड़ती नज़र डालें तो कुछ ख़ास बातें सामने आती हैं जिनका समाज और साहित्य दोनों के लिए परिवर्तनकारी महत्वा रहा है। जैसे, आर्थिक, राजनीतिक और भाषाई दृष्टियों से एशियाई देशों - ख़ासकर भारत और चीन - का विश्व-शक्तियों के रूप में उभारना। हिन्दी साहित्य और समाज से सम्बंधित ऐसे कुछ सवालों की ओर ध्यान जाता है जो उपरोक्त तीनों विषयों से अलग रख कर नहीं सोचे जा सकते।
यह तथ्य कि हिन्दी इस समय संसार की प्रमुख भाषाओँ में से है, देश की आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों से अनिवार्यतः जुड़ा है। हिन्दी भाषा के विस्तार के पीछे मुख्यतः व्यावसायिक और राजनीतिक कारण हैं, तथा मीडिया और प्रचार-प्रसार की टेक्नोलॉजी में विकास ने हिन्दी भाषा को नई तरह की ज़रूरतों से जोड़ा है। भाषा की क्षमता बढ़ी है।
वह एक ज़्यादा बड़े हिन्दी-भाषी समुदाय तक पंहुच रही है। उसके द्वारा जनमानस तक क्या संदेसा पंहुच रहा है- इसके गहरे अध्ययन से समाज के लिए
आज साहित्य की उपयोगिता का प्रश्न जुड़ा है। इस संदेशे के पीछे किस तरह के अंदेशे और उद्देश्य काम कर रहे हैं इस पर ही, बहुत कुछ, समाज में साहित्य जैसी चेष्टाओं का महत्व निर्भर है।
(साहित्य और आज का समाज: कुंवर नारायण )
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