देश और देशवासियों की सेहत की चिंता को लेकर चौबीसों घंटे तीमारदारी में लगे डॉक्टरों सहित सहायक स्वास्थ्य कर्मियों की मेहनत के सुफल को समाज के सार्वजनिक अभिवादन के विचार का अभिनन्दन।
भला हिंदुस्तान में पृथ्वी पर नवजात शिशु के जन्म पर स्वागत-सत्कार के रूप में थाली बजाने की बरसों पुरानी परंपरा से भला कौन अनजान है?
सुर-असुर संग्राम में देवताओं की जय के लिए स्वेच्छा से अपनी देह-दान करने वाले ऋषि दधीचि की कुल-परंपरा के असंख्य-अनाम स्वास्थ्य योद्धाओं के अप्रतिम साहस और संसार में संपूर्ण मनुष्यता को ग्रसने के लिए तत्पर कोरोना महामारी के समक्ष दुर्दम्य इच्छाशक्ति से डटे व्यक्तियों के लिए तो शंखनाद से देश-विदेश क्या अखिल ब्रह्मांड गूंजना चाहिए।
आखिर हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक-धार्मिक परंपरा "कृतज्ञता" की है, "कृतघ्न" राष्ट्र की नहीं।
सो, राष्ट्र के प्रधान के स्वर में समवेत ही है सबका भास्वर।
राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय इदं न मम
अर्थात यह मेरा नही है, कुछ भी मेरा नहीं है यही भारतीय दर्शन है।
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