07032020, दैनिक जागरण
रंगो का त्यौहार हो और रंग-बिरंगे रसभरे मीठे पकवानों की बात न हो, कैसे संभव है। एक प्रसिद्ध सूक्त भी है-रसौ वै सरू। अर्थात् वह परमात्मा ही रस रूप आनन्द है। हिन्दू भोजन पद्वति में रस छह माने गए हैं-कटु, अम्ल, मधुर, लवण, तिक्त और कषाय। जबकि महाकवि कालिदास ने स्वाद, रूचि और इच्छा के अर्थ में भी रस शब्द का प्रयोग किया है। आयुर्वेद में शरीर के संघटक तत्वों के लिए रस शब्द प्रयुक्त हुआ है।पुरानी दिल्ली की अस्सी साल से पुरानी मोटेलाला की खोया-दूध वाली पलंग तोड़ बर्फी और चैनाराम मिष्ठान का प्रसिद्ध सोहन हलवा भी थे। उल्लेखनीय है कि अब चैनाराम के मालिकों की तीसरी पीढ़ी दुकान का काम संभाल रही है जबकि वहां दूसरी पीढ़ी में काम करने वाले एक अनाम कारीगर ने सोहन हलवा के व्यंजन को तैयार किया था। जैसे इतिहास में होता है कि सेठ का नाम तो सब जानते है पर कारीगर का कोई नहीं।अब भला होली के अवसर पर देसी स्वाद के लिए पुरानी दिल्ली से बेहतर क्या ठिकाना हो सकता है। पिछले सप्ताह ही ओखला स्थित क्राउन प्लाजा होटल में हुए दिल्ली छह फूड फेस्टिवल आयोजन में कुछ ऐसा ही देखने को मिला था। उल्लेखनीय है कि क्राउन प्लाजा पिछले दस वर्षों से पुरानी दिल्ली के निरामिष-सामिष भोजन की उत्सवधर्मिता को अपने वार्षिक आयोजन में उपलब्ध करवा रहा है। पुरानी दिल्ली से दूर पर उसके खाने को प्यार करने वालों के लिए यह आयोजन किसी वरदान से कम नहीं है। जहां बिना किसी भीड़-भाड़ और धूल से दूर विश्वसनीय ढंग से बनाया गए भोजन का स्वाद संभव हो पाया है।यहां पुरानी दिल्ली के विविधतापूर्ण भोजन की सर्वव्यापी उपस्थिति थी। इतना ही नहीं, यहां आने वाले मेहमानों को स्थानीय भूगोल की वास्तविकता की अनूभति करवाने के लिए चांदनी चौक की खाने-पीने की दुकानों सहित परिवहन के परंपरागत साधनों जैसे बैलगाड़ी, साइकिल रिक्शा और मेट्रो रेल को आउटडोर कटआउटों से सजाया गया था। पुरानी दिल्ली के सामिष-निरामिष भोजन से लेकर मसालों और मिष्ठान तक को एक छत के तले परोसने की व्यवस्था के पीछे होटल के शेफ देवराज शर्मा के अथक प्रयास और बरसों का अनुभव था। इतिहास में देखे तो पता चलता है कि प्राचीन काल में राजे-रजवाड़ों और वणिकों के यहां रसोई का प्रबंध ब्राहाणों के हाथ में होता था, जिन्हें "महाराज" के नाम से पुकारा जाता था। मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के हम्मीरपुर जिले के रहने वाले क्राउन प्लाजा के महाराज देवराज शर्मा ने विशेष रूप कच्चे पपीते को कद्दूकस करके केसरी पपीता हलवा बनाया था, बाकी मूंग का सदाबहार हलवा तो था ही। इसी तरह, फतेहपुरी इलाके का मशहूर हब्शी हलवा भी था जो कि शुद्ध दूध में मध्य प्रदेश के लाल गेहूं के उम्दा दानों के मिश्रण से बनाया गया था।ऐसे ही, खाने का जायका बढ़ाने के लिए तरह-तरह के अचार-मुरब्बे थे। खास था, डायबिटिज वालों के लिए भिंडी का अचार। बाकी मूली, कटहल और भरवा मिर्ची के अचार तो थे ही। अब बिना दही भल्ले और चाट का स्वाद लिए पुरानी दिल्ली का खाना अधूरा ही कहा जाएगा। सो, उनके साथ खस्ता कचौड़ी (आलू की सब्जी के साथ), मखाने की चाट और गोलगप्पों की भी संगत थी।इतना ही नहीं, चांदनी चौक से चंदन पाउडर, साबुत लालमिर्च, राई, मुलेठी, सिक्किम की कबाब चीनी, सोपोर के बादाम, खस और पान की जड़ों को पुराने दौर के चीनी-कांच के मर्तबानों भी साक्षात देखा जा सकता था। आज प्लॉस्टिक पैकेट बंद मसाला पाउडरों के समय में इन ताज़ा दम कूटे हुए मसालों को देखना-सूंघना भी खाने के स्वाद की दिव्य अनुभूति से कमतर नहीं था।आखिर दाल मक्खनी-शाही पनीर और राजमा-चावल के बिना दिल्ली के खाना का सफर अधूरा ही है। सो, शाकाहारियों के लिए विविध विकल्प थे। ऐसे में, निरामिष भोजन के स्वादुओं के लिए मटन स्टयू, चिकन कोरमा, मटन हलीम और जहांगीर मटन कोरमा उपलब्ध थे। कबाब में जायके के लिए डाली जाने वाली खस की जड़ भी अलग से रखी गई थी। ताकि खाने वाले को उसके स्वाद का कारण नज़र भी आए।आखिर मांसाहारी भोजन में खड़े मसालों की ही स्वाद है, जिसमें विभिन्न प्राकृतिक जड़ों के प्रयोग से एक अलग तरह का ही स्वाद आता है। इसको भिन्न रंग-स्वाद देने के लिए पान की जड़, खस की जड़ और चंदन की जड़ का विशेष उपयोग किया गया था। निरामिष भोजन का साथ देने के लिए तंदूरी रोटी, लहसूनी नाॅन के साथ खोया, रबड़ी, नींबू के पराठें भी थे, जिनको खाकर बरबस पराठें वाली गली का ध्यान हो आया। आखिर ढ़हती मुग़लिया सल्तनत के दौर वाले एक मशहूर शायर ने यूहीं नहीं कहा था,कौन जाए जौक, दिल्ली की गलियां छोड़कर।
Saturday, March 7, 2020
Delhi 6_Single point for Indigenous Food_देसी भोजन के ठाट का ठिकाना_दिल्ली छह
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