Saturday, March 14, 2020

Footsteps of Scindia Royal Family in Delhi_सिंधिया घराने का दिल्ली से नाता

14032020, दैनिक जागरण 





हाल में ही देश में हुई राजनीतिक गतिविधियों के कारण सिंधिया परिवार दिल्ली के अखबारों की सुर्खियों में है। अगर इतिहास में झांके तो पता चलता है कि अंग्रेज कंपनी बहादुर ने वर्ष 1803 में पटपड़गंज की लड़ाई में सिंधिया राजवंश की सेना को हराकर की दिल्ली पर कब्जा जमाया था। इस तरह, सिंधिया घराने और दिल्ली का इतिहास एक-दूसरे से गुंथा हुआ है। जहां दिल्ली के विभिन्न हिस्सों पर सिंधिया परिवार की उपस्थिति आज भी है।
दिल्ली में सिरेमिक (मिट्टी के बर्तन) उद्योग का आंरभ वर्ष 1914 में दिल्ली पॉटरी वर्क्स की स्थापना के साथ हुआ। फिर वर्ष 1923 में सिंधिया या ग्वालियर पॉटरी वर्क्स की शुरूआत हुई। दूसरे विश्व युद्ध में इस उद्योग की इकाइयों की संख्या में इजाफा हुआ और उत्पादन में विविधता बढ़ने के साथ वृद्धि हुई। उल्लेखनीय है कि महाराज माधो राव (1877-1925) ने ग्वालियर रियासत में सिंचाई के लिए नहरों के निर्माण और व्यापक स्तर पर औद्योगीकरण की शुरुआत करके परिवार की प्रतिष्ठा को बढ़ाया।



1957 में पहली बार कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा सांसद के रूप में संसद पहुंचने वाली विजयाराजे सिंधिया ने इस विषय पर अपनी आत्मकथा में लिखा है कि माधोराव सिंधिया ने ग्वालियर पाॅटरी शुरू करके स्वयं के उद्योग स्थापित न करने के अपने नियम को तोड़ा। उन्होंने ऐसा निर्णय इसलिए किया क्योंकि वे भारत के गांवों के पारंपरिक कारीगरों को उनके उत्पाद की बिक्री के लिए एक नया स्थान उपलब्ध करवाना चाहते थे। यह रियासत के राजा की दूरदर्शिता और मानवीय पक्ष को दर्शाता है जो कि उस समय में अपने राज्य के कारीगरों को एक बड़ा बाजार उपलब्ध करवाना चाहता था।  उन दिनों तीस एकड़ के भूखंड वाली यह फैक्ट्री, नई दिल्ली के दक्षिण में लगभग दस मील की दूरी पर स्थित थी। आज भी सरोजिनी नगर के लेखा विहार में सिंधिया पॉटरिज कम्पाउंड है। जिसके बांए ओर सरोजिनी नगर बाजार है तो दाएं ओर अफ्रीका एवेन्यू की सड़क है। जबकि इसका प्रवेश द्वार रिंग रोड की तरफ है। सिंधिया पॉटरी के नाम से मशहूर और करीब 40 एकड़ में फैले सिंधिया परिवार की यह जमीन बेशकीमती है। इसे लेकर अब न्यायालय में पारिवारिक संपत्ति विवाद चल रहा है।



आधुनिक दिल्ली में बस सेवा का प्रारम्भ बहुत साधारण रूप में छोटे दशक के अंत में हुआ। उस समय कुछ निजी वाहन-संचालकों ने कुछ रास्तों पर बसें चलाना शुरू किया। वर्ष 1940 में "ग्वालियर एंड नार्दन इंडिया ट्रांसपोर्ट कंपनी" को दिल्ली में बसें चलाने का परमिट दिया गया। 14 मई 1948 को भारत सरकार ने सिंधिया की कंपनी से ही दिल्ली की शहरी बस सेवाओं को अपने अधिकार में ले लिया और परिवहन मंत्रालय के सीधे नियंत्रण में लेकर दिल्ली ट्रांसपोर्ट सर्विसेज के तहत उसे दो वर्ष चलाया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1921 में, ग्वालियर एंड नादर्न इंडिया ट्रांसपोर्ट कंपनी का 19 लाख रूपए की पूंजी निवेश के साथ से शुरू की गई थी। जबकि वर्ष 1925 के बाद ग्वालियर दरबार ने राज्य में मोटर-लॉरी सेवाओं के बेहतर प्रबंधन के लिए कंपनी का कामकाज अपने हाथ में ले लिया था। तब यह कंपनी ग्वालियर रियासत के साथ-साथ कुछ पड़ोसी राज्यों की परिवहन जरूरतों को भी पूरा करती थी।



दिल्ली परिवहन निगम का कनाट प्लेस में स्थित कार्यालय आज भी सिंधिया हाउस ही कहलाता है। प्रसिद्व पत्रकार खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उनके ठेकेदार पिता सुजान सिंह ने अपने लिए वेंगर्स से लेकर अमेरिकन एक्सप्रेस तक का कनॉट प्लेस का एक पूरा का पूरा ब्लॉक बनवाया। उन दिनों यह सुजान सिंह (खुशवंत सिंह के दादा) ब्लॉक कहलाता था। इतना ही नहीं, उन्होंने ही रीगल बिल्डिंग, नरेंद्र प्लेस, जंतर मंतर के पास और सिंधिया हाउस बनाए। ये सब उनकी निजी संपत्तियां थीं। अंग्रेजी लेखक रस्किन बांड अपनी पुस्तक “सीन्स फ्रॉम ए राइटर्स लाइफ“ 40 के दशक की दिल्ली के बारे में लिखते हैं कि उन्होंने कनाट सर्कस के सामने एक अपार्टमेंट वाली इमारत सिंधिया हाउस में एक फ्लैट ले लिया था। यह मुझे पूरी तरह से माफिक था क्योंकि यहां से कुछ ही मिनटों की दूरी पर सिनेमा घर, किताबों की दुकानें और रेस्तरां थे।
महाराज माधव राव ने दिल्ली के सिविल लाइन क्षेत्र में अपना तीसरा घर ग्वालियर हाउस, 37 राजपुर रोड पर बनवाया। इसके मूल में वर्ष 1911 में अंग्रेजों के दिल्ली दरबार में कलकत्ता से राजधानी के दिल्ली स्थानांतरण की घोशणा थी। जिसके बाद अंग्रेज सरकार ने सभी राजा-रजवाड़ों को दिल्ली में अचल संपत्ति लेने का आदेश दिया था। उसमें भी दिल्ली से करीब “विशेषकर राजपूताना और मध्य भारत के राज-प्रमुखों“ से यह बात कही गई थी। उल्लेखनीय है कि अंग्रेजों के राज में ग्वालियर रियासत को हैदराबाद, मैसूर, कश्मीर और बड़ौदा को सबसे अधिक 21 तोपों की सलामी की पात्रता मिली हुई थी।उस दौर में इंडिया गेट से हटकर सिविल लाइंस इलाके में, ग्वालियर, जामनगर, कोल्हापुर, नाभा, सिरोही और उदयपुर रियासतों ने अपने भवन निर्मित किए। 25 अगस्त 1948 को संविधान सभा में तारांकित प्रश्न संख्या 470 के उत्तर में नरहर विष्णु गाडगिल ने बताया था कि दिल्ली में रियासतों के कुल 27 भवन हैं, जिसमें से भारत सरकार ने 11 इमारतों का सरकारी कार्यालय या आवास के रूप में उपयोग के लिए अधिग्रहण किया है। इन 27 भवनों में ग्वालियर हाउस भी शामिल था। 



वरिष्ठ अंग्रेजी पत्रकार कूमी कपूर ने अपनी पुस्तक "द इमरजेंसीः ए पर्सनल हिस्ट्री बाॅय" में तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल के दौर से जुड़ी इस भवन की कहानी लिखी है। पुस्तक के अनुसार, सरकार ने उनके (विजयराजे सिंधिया) बैंक खातों को फ्रीज कर दिया। आयकर अधिकारियों ने ग्वालियर रियासत की दिल्ली, पुणे, मुंबई और ग्वालियर में सभी संपत्तियों पर छापा मारा। आयकर अधिकरियों ने दिल्ली में 37 राजपुर रोड के बंगले, जहां पर राज परिवार रहता था, को अधिग्रहित कर लिया था। इतना ही नहीं, तब इस इमारत को बीस सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन की निगरानी से जुड़े अधिकारियों को आवंटित कर दिया गया। तब विजयाराजे सिंधिया तिहाड़ जेल में भी कैद रहीं। उल्लेखनीय है कि आधुनिक भारतीय संसदीय इतिहास में विजयाराजे सिंधिया अपने राजनीतिक जीवन में सात बार लोकसभा की और दो बार राज्यसभा की सदस्य रही। जो कि एक महिला नेता के नाते रिकॉर्ड है।

No comments:

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...