सरमद का कत्ल कर दिया गया मुगल बादशाह औरंगज़ेब के हुक्म से। उसने मुल्लाओं के साथ साजिश की थी। लेकिन सरमद हंसता रहा। उसने कहा, मरने के बाद भी मैं यहीं कहूंगा। दिल्ली की विशाल जामा मस्जिद, जहां सरमद का कत्ल हुआ, इस महान व्यक्ति की समृति लिये खड़ी है।
दिल्ली की मशहूर जामा मस्जिद से कुछ ही दूर, बल्कि बहुत करीब, एक मज़ार है जिस पर हजारों मुरीद फूल चढ़ाते, चादर उढ़ाने आते है। इत्र की बोतलों और लोबान की खुशबू से महक उठता है उसका परिवेश। वह मज़ार है हज़रत सईद सरमद की।
सरमद एक यहूदी सौदागर था, जो सत्रहवीं सदी में पैदा हुआ—शायद पैलेस्टाइन में।
संत भीखा, गुलाल साहब के शिष्य थे और गृहस्थ जीवन जीते थे। सिर से पैर तक भीगा हुआ सरमद भीखा पर कुरबान हो गया। सारा आना-जाना समाप्त हुआ। इससे पहले ऐयाशी की जिंदगी जी रहे सरमद ने अब फकिराना गिरेबान पहन लिया। अब उसे भीखा के सिवाय कुछ सूझता ही नहीं था। ऐसा क्या जादू किया भीखा ने?
भीखा ने एक ही करिश्मा किया: सरमद का रूख बाहर से भीतर की और मोड़ दिया। बहुत घूम लिये बाजारों और जंगलों में, अब भीतर ठहर जाओं। अपने जिस्म में ही काबा और काशी है, उसे ढूंढो। और सरमद ने वाकई उसे ढूंढ लिया।
दिल्ली में दो मुगल बादशाहों की सल्तनत के दौरों से सरमद गुजरा: शाहजहां और उसका बेटा औरंगज़ेब। शाहजहां ने उसे बहुत इज्जत बख्शी और औरंगज़ेब ने मौत।
सरमद का सिर क्यों कलम किया गया इस पर उसकी जीवनी लिखने वालों में मतभेद है। एक मत के अनुसार सरमद गति कलमा पढ़ता था इसलिए उसे सज़ा-ए-मौत दी गई। ‘’ला इलाह इल तल्लाह’’ की जगह वह सिर्फ ‘’ला इलाह’’ कहता था, जिसका मतलब होता है कोई खुदा नहीं है। लेकिन सवाल यह है कि सरमद मुसलमान नहीं था, यहूदी था। फिर उस पर कुरान की तौहीन करने का इल्जाम कैसे लगाया जा सकता है? इसका जवाब कोई नहीं दे सकता।
औरंगज़ेब 1658 में तख़्तनशीन हुआ और उसने 1659 में सरमद का कांटा हटा दिया। सरमद को मारकर उसे तसल्ली नहीं हुई। उसने सरमद की सारी रूबाइयात जला दी। किसी तरह 321 रूबाइयां औरंगज़ेब के चंगुल से बच गई।
सरमद की रूबाइयां मूल फारसी भाषा में लिखी गई है। उन्हें लखनऊ के मुन्शी सैयद नवाब अली ने उर्दू में अनुवादित किया। यहूदी लेखक आई. ए. इज़िकेल जो कि एक साधक थे, उन्होंने अपने अन्य सत्संगी मित्रों की मदद से इन रबाइयों का अंग्रेजी अनुवाद किया।
(सरमद : भारत का यहूदी संत—ओशो )
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