Tuesday, February 5, 2013

Dinkar: Ramayana and Mahabharata

हम वैदिक काव्य तथा रामायण और महाभारत को बहुत ऊँचा पाते हैं, क्योंकि इन कविताओं में पारदर्शिता बहुत अधिक है और उनके भीतर से जीवन की बहुत बड़ी गहराई साफ दिखाई पड़ती है। इसके सिवा, उनसे यह भी ज्ञात होता है कि जिस युग में काव्य रचे गए, उस युग में यह देश समाज-संगठन के आदर्शों को लेकर और अगोचर सत्यों का पता लगाने के लिए भयानक संघर्ष कर रहा था।
उपनिषदों का समय शंका, जिज्ञासा, चिन्तन और बौद्धिक कोलाहल का समय था। अन्तिम सत्य क्या है, इसे जानने के लिए उस युग के ऋषियों ने इतना अधिक चिन्तन किया कि उपनिषदों में कहीं-कहीं हमें उनके दिमाग के फटने की-सी आवाज सुनाई पड़ती है और चूँकि, यह साहित्य बौद्धिक एवं भौतिक दोनों ही प्रकार के अप्रतिम, संघर्षों के सान्निध्य में लिखा गया, इसलिए, उस साहित्य से हमें आज भी प्रेरणा मिलती है, बल्कि, तीन-चार हजार वर्षों से यही साहित्य सारे भारतीय साहित्य का उपजीव्य रहा है।
(काव्य की भूमिका, रामधारी सिंह दिनकर, प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन)

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