Monday, February 11, 2013
foriegn shade on hindi literary critism:Paliwal
''हाय री विडंबना! हिंदी की आधुनिक आलोचना ने देशभक्तिपरक रचना-कर्म को तुच्छ भावुकता की सतही कविता कहकर ठुकरा दिया है. इस ठुकराने के पीछे हिंदी के उन आलोचकों की साजिश है, जो विदेशी विचारधाराओं के प्रचारक या कपट मुनि हैं. ये आलोचक देश भक्ति के नाम से ऐसे बिदकते-भड़कते हैं, जैसे पागल पानी से डरता है.''
-कृष्णदत्त पालीवाल, हिंदी का आलोचना पर्व
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