Thursday, February 7, 2013
Tagore:Freedom of Speech
बौद्धिक आजादी और लेखकीय स्वायत्तता का उल्लंघन होता हो तो इसका जबर्दस्त विरोध किया जाना चाहिए। अपने एक प्रसिद्ध निबंध ‘द कॉल ऑव द ट्रुथ’ (सत्य की पुकार) में रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बड़े धारदार शब्दों में किसी की ‘जोर-जबर्दस्ती के आगे बुद्धि की मर्यादा को तिलांजलि देने से इंकार करने के महत्त्व को रेखांकित किया है। उनका तर्क है कि भारत जब तक यह नहीं जान लेता कि ‘उसकी बुनियाद उसका मन है जो अपनी बहुविधि शक्तियों और इन शक्तियों पर विश्वास करके हर समय अपने लिए स्वराज्य रचता है’, तब तक सच्ची आजादी हासिल नहीं कर सकता।
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