Monday, February 11, 2013

Krishnadutt Paliwal on Vijaydev Narayan Sahi

कृष्णदत्त पालीवाल-विजय देव नारायण साही
विजय देव नारायण साही की स्मृति नई पीढ़ी के दिमाग में बसी इतिहास, समाज, संस्कृति और परंपरा के चिंतन सूत्रों की वह कभी न खत्म होने वाली स्मृति है, जो हमारी प्रगतिशीलता और भारतीयता के दोनों किनारों को गर्म रखती है.
वे आगे साही के प्रसिद्ध निबंध लघुमानव के बहाने हिंदी कविता पर एक बहस के संबंध में लिखते हैं, ''अकेले इसी एक लेख ने साही को हिंदी समीक्षा के केंद्र में ला दिया है. इस लेख के वाक्यों को विवश होकर मार्क्सवादी आलोचकों ने अपना 'हनुमान चालीसा' बनाया तथा जोर-जोर से गाकर अपना भय भी दूर किया.
-कृष्णदत्त पालीवाल, हिंदी का आलोचना पर्व

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