Wednesday, February 6, 2013

Ekla Chalo Re_Tagore_एकला चलो रे_रवीन्द्रनाथ ठाकुर




जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसेतोबे एकला चलो रेजोदी तोर डाक सुने केउ ना आसेतोबे एकला चलो रेएकला चलो, एकला चलो,एकला चलो, एकला चलो रेजोदी तोर डाक सुने केउ ना आसेतोबे एकला चलो रेजोदी तोर डाक सुने केउ ना आसेतोबे एकला चलो रे

(अगर कोई तुम्हारी आवाज न सुनें तो तुम अकेले ही अपने रास्ते पर बढ़े चलो।)
-रवीन्द्रनाथ ठाकुर 


'एकला चलो रे' का गीत, आज के झारखंड के गिरिडीह शहर में लिखा गया था। यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के स्वदेशी काल में विरोध स्वरूप लिखे गए 22 विरोध गीतों में से एक था। 


यह वर्ष 1905 में अंग्रेजों की बंगाल प्रेसीडेंसी में बंग-भंग विरोधी आंदोलन का सबसे मुखर गीत एक बन गया था।


'एक्का' (अकेला) के शीर्षक के रूप में यह गीत पहली बार 'भंडार' पत्रिका के सितंबर 1905 के अंक में प्रकाशित हुआ था। 'एका' को पहली बार वर्ष 1905 में रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गीत संग्रह 'बाउल' में सम्मिलित किया गया था। 

वर्ष 1941 में, इसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर के संगीत संपूर्ण संकलन 'स्वदेश' के 'गीतावितान' खंड में शामिल किया गया। 


যদি তোর ডাক শুনে কেউ না আসে তবে একলা চলো রে।
একলা চলো, একলা চলো, একলা চলো, একলা চলো রে॥
(Jodi tor daak shune keu naa ashe tobe ekla cholo re
Tobe ekla cholo, ekla cholo, ekla cholo, ekla cholo re)
If they answer not to your call walk alone.
-Rabindranath Tagore
"Ekla Chalo Re" was written at Giridih town in modern-day Jharkhand. It was one of the 22 protest songs written during the Swadeshi period of Indian freedom movement which became one of the key anthem of the Anti-Partition Movement in Bengal Presidency in 1905.
Titled as "Eka" ("Alone") the song was first published in the September 1905 issue of Bhandar magazine."Eka" was first included in Tagore’s song anthology Baul in 1905. In 1941, it was incorporated into the "Swadesh" ("Homeland") section of Gitabitan, the complete anthology of Tagore’s music.

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