वैसे दरियागंज में पत्रकारिता पर भी काफी किताबों का ढ़ेर दिखा,
खास कर हिंदी वालों का. आईआईएमसी के दो संगी पत्रकारों की किताबों को मैंने भी ख़रीदा २५-५० रुपए में.
फुटपाथ पर बिकने वाली पुरानी किताबों में भी अंग्रेजी का जोर है, दाम-संख्या दोनों में.
सूकून यही है कि दरियागंज के रविवार को लगने वाले पुरानी किताबों के बाज़ार से अज्ञेय की ज्ञानपीठ से प्रकाशित नयी रचनावली मिल गयी, मात्र एक हज़ार में. किताब वाले के पास थोक में माल है, अज्ञेय के रसिक अगले सप्ताह धावा बोल सकते है, दुकान एक दम दरियागंज के थाने के सामने है.…
सेकंड हैंड हिंदी किताबों का अर्थशास्त्र (ग्राउंड रिपोर्टिंग)
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