भारतीय संस्कृति 'सामासिक-संस्कृति' नहीं है, मिश्र संस्कृति है। संस्कृतियाँ प्रभाव ग्रहण करती हैं। उनमें आदान-प्रदान चलता है इसलिए वे अपनी 'संग्राहता' से 'मिश्रता' को ही उजागर करती हैं। समन्वय-सामंजस्य, विरोधों का मेल, टकराहट-तनाव-संघर्ष यह सब संस्कृति का भीतरी संवादी-स्वर है जो अन्तत: एक मिश्र-संस्कृति का रूप ले लेता है। समाजशास्त्रीय-पुरातात्त्विक खोजों का सार-सर्वस्व यही है कि भारतीय संस्कृति को 'मिश्र-संस्कृति' ही कहा जा सकता है।
-अज्ञेय
स्त्रोत: http://www.hindisamay.com/contentDetail.aspx?id=777&pageno=1
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