तेरे जाने पर भी, हवा में तेरी मौजूदगी है
माना कि दिल उदास है, जुबां खामोश है
इतनी चुप्पी है, आवाज धड़कन की गूँजती है
माना कि तू नहीं है, फिर फिज़ा क्यों मदहोश है
अब क्या कहू बात भला, जो ऐसे ही चुक गयी
जलेगा क्या वह दीपक, जिसकी बाती ही बुझ गयी
कदमों के जिसकी आहट, आँखे दूर से सुन लेती थी
चुपचाप सिसकते दर्द की, क्या टीस उठती है छाती में?
शोरगुल वाली बस्ती में, कभी मौत की चुप्पी होगी
किसने सोचा था ऐसा, किसने जाना था वैसा
अब यह आलम है, हवा भी सहमी सी गुजरती है
किसने माना था होगा ऐसा, किसने कहा था वैसा
वजूद पर तेरे हैरान हूँ, सवालों से दुनिया के परेशान हूँ
हमसाया था जो जिंदगी का, हमसफ़र न बन पाया
अपने ऐतबार पर हैरान हूँ, उसके ना होने से परेशान हूँ
चाहा था खुद से ज्यादा, वही खुदा न हो पाया
(साभार चित्र: कामिनी राघवन)
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