हमारा मीडिया पूरी तरह से पश्चिम का पिछलग्गू है. उसकी अपनी कोई सोच इतने वर्षों में नहीं बन पाई है. यहाँ तक कि हमारे मीडिया पर परोक्ष नियंत्रण भी उन्हीं का है.
जब हमारे मीडिया के समस्त मानदंड वही तय करता है तो नियंत्रण भी उसी का हुआ. उसे किधर जाना है, किधर नहीं जाना है, यह भी पश्चिम ही तय कर रहा है. यानी भारत के सवा लाख करोड़ रुपये के मीडिया बाजार के नियंत्रण का सवाल है, जिसकी तरफ मीडिया प्रेक्षकों का ध्यान गया है.
हालांकि इसमें केवल पश्चिमी मीडिया का ही दोष नहीं है, हमारे मीडिया महारथी भी बराबर के जिम्मेदार हैं. कई बार ऐसा लगता है कि उनके पास कोई विचार ही नहीं है. वे सिर्फ नक़ल के लिए बने हैं. अमेरिका से कोई विचार आता है तो वे उसे इस तरह से लेते हैं, जैसे गीता के वचन हों.
-गोविन्द सिंह
स्त्रोत: http://haldwanilive.blogspot.in/2014/04/blog-post_8406.html
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