लोग कभी-कभी पूछते हैं कि इक्कीसवीं सदी में-कम्प्यूटरों की सदी में-कविता की जरूरत क्या होगी? हमारी स्मृति का परिदृश्य ही हमारे उत्तर में विश्वास का बल भरता है-कि अगर हमें तब अपनी ही कोई जरूरत होगी तो कवन की-काव्य के रचना-कर्म की-भी जरूरत होगी। जब-और अगर-हमने अपने को ही गैर-ज़रूरी बना दिया होगा तब की बात दूसरी है। और वह बात दूसरों के करने की है, न कवि के, न सहृदय के।
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