एक जमात दलित मार्क्सवादियों की भी है जो बुद्धिजीवी कहलाने के मोह में प्रगतिशीलता के नाम पर लाल सलाम के झंडे का डंडा बनकर अपनी पहचान को चमकाने में रहते है. इनकी स्थिति नहुष वाली हो जाती है, दलित समाज उन्हें दलित नहीं मानता और मार्क्सवादी उन्हें बुद्धिजीवी !
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