1919 में जालियांवाला बाग में अंगरेज शासक ने निहत्थों पर अंधाधुंध गोलियां बरसा कर सैकड़ों लोगों को मार दिया था. उस जनसंहार दस्ते का नेतृत्व ब्रिगेडियर आरइएच डायर कर रहा था. ऊधम सिंह ने जनरल डायर को इसलिए मारा, क्योंकि ब्रिगेडियर डायर के कुकृत्यों का उसने समर्थन किया था. याद रहे कि डायर एवं ओ डायर दो व्यक्ति थे.
लंदन कोर्ट में ऊधम सिंह के खिलाफ सुनवाई सिर्फ दो दिनों में ही पूरी कर ली गयी थी. उन्हें फांसी की सजा दे दी गयी. 31 जुलाई, 1940 को उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया. उनकी अस्थियां 1974 में दिल्ली लायी गयी. ब्रिटिश सरकार चाहती थी कि इस अस्थि यात्र का कोई प्रचार न हो.
इसके बावजूद पालम हवाई अड्डे पर कांग्रेस अध्यक्ष डॉ शंकर दयाल शर्मा, गृहमंत्री उमाशंकर दीक्षित, पंजाब के मुख्यमंत्री जैल सिंह, सूचना प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल, पर्यटन मंत्री राज बहादुर, दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद राधारमण सहित अनेक लोग उपस्थित थे. अस्थियां एक विशेष गाड़ी में कपूरथला हाउस लायी गयीं. वहां प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी उस पर श्रद्धा सुमन चढ़ाये.
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