दंगों में प्रभावित गुजराती मुसलमानों की पीड़ा से सदैव द्रवित होने वाले व्यक्तियों, संगठनों और दलों को इस्लामी जेहादियों की कट्टरता के शिकार तथा अपने देश में ही शरणार्थी कश्मीरी पंडितों का संताप क्यों नहीं दिखता ?
वैसे रक्त का रंग तो दोनों का लाल ही है पर एक के लिए खून जोर मारता है और दूसरे के लिए पानी हो जाता है, यह स्थान दोष है या इतिहास बोध की कमी या फिर रतौंधी रोग?
भला दुख का भी कोई रंग होता है?
चित्र: मंजीत बावा (टू-लिव )
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