शाहजहां सन् 1638 में आगरा से राजधानी को हटाकर दिल्ली ले आया और दिल्ली के सातवें नगर शाहजहांनाबाद की आधारशिला रखी । इसका प्रसिद्व दुर्ग लालकिला यमुना नदी के दाहिने किनारे पर शहर के पूर्वी छोर पर स्थित है सन् 1639 में बनना शुरू हुआ और नौ साल बाद पूरा हुआ । इसी लालकिले की प्राचीर से आजादी मिलने के बाद पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपना भाषण दिया था । सन् 1650 में शाहजहां ने अपनी विशाल जामे मस्जिद का निर्माण पूरा करवाया जो कि भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है ।
जब अंग्रेजों ने 1857 के बाद दिल्ली पर दोबारा कब्जा किया तो इमारतों को नेस्तानाबूद कर दिया और उनकी जगह सैनिक बैरकें बना दी । इसी तरह, जामा मस्जिद और शाहजहांनाबाद के दूसरे हिस्सों को भी समतल कर दिया गया । इस तरह न केवल सैकड़ों रिहाइशी हवेलियों बल्कि शाहजहां की दौर की अकबराबादी मस्जिद भी को जमींदोज कर दिया गया । शहर में रेलवे लाइन के आगमन के साथ जहांआरा बेगम द्वारा चांदनी चैक के निर्मित बागों में भी इमारतें खड़ी कर दी गई और इस तरह शाहजहांनाबाद का स्थापत्य और शहरी स्वरूप हमेशा के लिए बदल गया ।
बीसवीं शताब्दी के अंत में भारत की अंग्रेजी हुकूमत ने दिल्ली के वजूद को राजधानी के तौर पर दोबारा कायम करने का फैसला लिया और इसलिए शाहजहांनाबाद और रिज के साथ उत्तरी छोर तक के कश्मीरी गेट इलाके में अस्थायी राजधानी बनाई गई । वाइसराय लाज, जहां अब दिल्ली विश्वविद्यालय है, के साथ अस्पताल, शैक्षिक संस्थान, स्मारक, अदालत और पुलिस मुख्यालय बनाए गए । एक तरह से, अंग्रेजों की सिविल लाइंस को मौजूदा दिल्ली के भीतर आठवां शहर कहा जा सकता है।
एडवर्ड लुटियंस के दिशानिर्देश में बीस के दशक में नियोजित और निर्मित दिल्ली की शाही सरकारी इमारतों, चौड़े-चौड़े रास्तों और आलीशान बंगलों को एक स्मारक की महत्वाकांक्षा के साथ बनाया गया था।
सन् 1947 में मिली आजादी के साथ हुए देश विभाजन के समय राजधानी होने के कारण दिल्ली में बेहतर ढांचागत सुविधाएं और अवसर थे । इस वजह से अपने ही देश में शरणार्थी बने नागरिकों ने भारी तादाद में दिल्ली में ही डेरा जमाया । सन् 1955 तक आते आते पुराना किले के इर्दगिर्द की जगह भरने लगी थी ।
पहले दिल्ली में एक मुख्य आयुक्त होता था जो कि पूरे प्रांत का कामकाज देखता था आजादी के बाद दिल्ली को भाग सी के तहत दर्जा देते हुए एक पृथक विधानसभा दी गई । सन् 1956 में राज्य पुर्नगठन आयोग की सिफारिशों के परिणमस्वरूप दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश बन गई।
आज प्रमुख पर्यटक स्थलों पर बिकने वाले पोस्टकार्ड में तस्वीरें बदल चुकी है । अब लालकिला, कुतुब मीनार और इंडिया गेट की जगह मेट्रो रेल, अक्षरधाम मंदिर और बहाई मंदिर ने ले ली है । सन् 2002 में दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन की शाहदरा और तीस हजारी के बीच पहली बार चली मेट्रो रेल ने राजधानी के सार्वजनिक परिवहन की सूरत और सीरत दोनों बदल दी है। दिल्ली परिवहन निगम की बसों से पहले राजधानी में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के नाम पर ग्वालियर के सिंधियाओं की कंपनी जीएनआईटी ग्वालियर ऐंड नार्थ इंडिया टांसपोर्ट कंपनी की प्राइवेट बसें थी ।
आज मेट्रो का यह नेटवर्क बढ़कर 139 स्टेशनों के 190 किलोमीटर तक फैल चुका है, जहां 200 से अधिक ट्रेनें प्रतिदिन करीब 18 लाख यात्रियों को सुबह छह बजे से रात के ग्यारह बजे तक अपनी मंजिलों पर पहुंचाती है । आज दिल्ली मेट्रो राजधानी की सीमा से बाहर निकलकर नोएडा, गुड़गांव और गाजियाबाद तक पहुंच चुकी । एक तरह से मेट्रो ने करीब एक शताब्दी से उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम और पुराने शहर में बंटी दिल्ली को एक सूत्र में पिरो दिया है ।
प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका रीडर्स डाइजेस्ट के ब्रिटिश संस्करण में (जुलाई 2011) नई दिल्ली स्थित स्वामीनारायण अक्षरधाम को 21 वीं सदी के सात आश्चर्यों में से एक के रूप में चयनित किया । केवल पांच साल में बनकर तैयार हुए और 100 एकड़ में फैले स्वामीनारायण अक्षरधाम परिसर का शुभारंभ नवंबर 2005 को हुआ। इसका मुख्य मंदिर मुख्य रूप से राजस्थान के गुलाबी बलुआ पत्थर से बनाया गया है और इसकी संरचना में लोहे का प्रयोग नहीं किया गया है । 141 फीट ऊंचे, 316 फुट चैड़े और 356 फुट लंबे इस मंदिर में प्रस्तर की अद्भुत हस्तकला दर्शनीय है । अब तक 25 लाख से अधिक आगंतुक इस लुभावनी कला और स्थापत्य कला के प्रतीक से अभिभूत होने के साथ समाज में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने वाले एक मूल्य आधारित जीवन के वैश्विक संदेश का प्रचार से प्रेरित है ।
रीडर्स डाइजेस्ट के शब्दों में, ताजमहल निर्विवाद रूप से भारत की वास्तुकला का प्रतीक था पर अब इस मुकाबले में अक्षरधाम मंदिर एक नया प्रतिद्वंदी है । जबकि बहाई मंदिर भारतीय धार्मिक सहिष्णुता का एक और प्रतीक है । मजेदार बात यह है कि सन् १८४४ में अपने उद्भव के साथ ही बहाई धर्म भारत से जुड़ा हुआ है । अनेकता में एकता का प्रचार करने वाले बहाउल्लाह इस धर्म में दीक्षित होने वाले सबसे पहले 18 व्यक्तियों में से एक व्यक्ति भारतीय था। सन् 1986 में दिल्ली में बने बहाई मंदिर (लोटस टेम्पल) में प्रतिदिन औसतन दस हजार पर्यटक आते हैं । आज बहाउल्लाह के नैतिक संदेश को देश में एक हजार से अधिक स्थानों पर बच्चों की कक्षाओं के माध्यम से फैलाया जा रहा है।
गालिब की जुबान में कहे तो दिल्ली की हस्ती मुनहसर कई हंगामों पर थी ।
किला, चांदनी चौक, हर रोजा बाजार मस्जिद ए जामा का, हर हफते सैर जमना के पुल की, हर साल मेला फूल वालों का।
ये पांचों बातें अब नहीं फिर कहो,दिल्ली कहां।
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