पूर्व पाकिस्तानी लोग उर्दू समझ तो सकते थे लेकिन बोल नहीं सकते. इसलिए एक डर था कि पाकिस्तान बंगाली भाषा दबाना चाहता था क्योंकि वो पूर्व पाकिस्तान को उपनिवेश बनाना चाहता था."अब्दुल गफ़्फ़ार चौधरी, अमार भायेर रोक्तो रांगानो गीत के लेखक
वर्ष १९४७ में अविभाजित हिंदुस्तान के विभाजन के बाद पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मोहम्मद ने २१ मार्च १९४८ को ढाका के रेस कोर्स मैदान में घोषणा की थी कि पूरे पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा उर्दू होगी. जबकि असल में पाकिस्तान के किसी भी सूबे की भाषा उर्दू नहीं थी. पंजाब में पंजाबी, सिंध में सिंधी, नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस में पश्तो और पूर्व पाकिस्तान में बंगाली भाषा बोली जाती थी.
पाकिस्तान के 56 प्रतिशत लोग बंगाली थे, हम लोग बहुसंख्यक समुदाय थे. पूर्व पाकिस्तानी लोग उर्दू समझ तो सकते थे लेकिन बोल नहीं सकते. इसलिए एक डर था कि पाकिस्तान बंगाली भाषा दबाना चाहता था क्योंकि वो पूर्व पाकिस्तान को उपनिवेश बनाना चाहता था.जिन लोगों ने बंगाली भाषा के लिए आंदोलन किया उन्हें देशद्रोही, कम्यूनिस्ट, भारत समर्थक और यहां तक कि इस्लाम के ख़िलाफ़ तक बताया गया.
पाकिस्तान सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के साहित्य, संस्कृति पर प्रतिबंध लगाने की बात कही. रविंद्रनाथ ठाकुर और नज़़रुल इस्लाम जैसे महान कवियों, सारे बंगाली साहित्य को इस्लाम विरोधी बताया गया. ऐसा तो अंग्रेज़ों के राज में भी नहीं हुआ.
No comments:
Post a Comment