"आप सोचते हैं, ये अपनी भूख मिटाने आए हैं..वे उन तृष्णाओं को चुगने आते हैं, जो लोग पीछे छोड़ जाते हैं। ये न आते, तो जिन्हें आप साथ लाए हैं..उनकी प्रेतात्मा भूखी-प्यासी भटकती रहती...आप क्या सोचते हैं-देह के जलने के बाद मन भी मर जाता है? आपको मालूम नहीं, कितना कुछ पीछे छूट जाता है। आप सौभाग्यवान हैं कि मैंने बुलाया और ये आ गए..कभी-कभी तो लोग घंटों बाट जोहते रहते हैं और ये कहीं दिखाई नहीं देते।"
-निर्मल वर्मा, तर्पण के भोजन को खाने आए गिद्धों के बारे में (अंतिम अरण्य)
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