जब तक दिल्ली में कुमाउंनी लोगों की बिरादरी गोल मार्केट से लेकर सरोजिनी नगर तक के सरकारी क्र्वाटरों में सीमित थी, वे अपनी होली परंपरागत ढंग से मना पाते थे, अब नहीं।
दिल्ली और मुंबई में बसे बिहारी अपना विशेष पर्व छठ मनाने के लिए अपने गांव-घर लौटने को ललकते हैं और भारतीय रेल को उनके लिए विशेषगाडि़यां चलानी पड़ती हैं। तो लोगों के अपने क्षेत्र और अपनी बिरादरियों से कट जाने तथा हर नगर, हर मोहल्ले में अनेक क्षेत्रों के लोगों के बस जाने के बाद हम अपने त्योहार परंपरागत ढंग से मनाने की और उनका अर्थ और संदर्भ बनाए रखने की स्थिति में रह नहीं गए हैं। फिर हमारी तथाकथित आधुनिकता ने हमारे लिए त्योहारों समेत हर परंपरागत चीज को पूरी तरह पिछड़ेपन से जोड़ दिया है। तो आज महानगरों में होली का उत्साह कहीं नजर आता है तो झोंपड़पट्टियों में ही। अपने मध्यवर्गीय मोहल्ले में मैंने इधर होली का रंग वर्ष प्रति वर्ष और अधिक फीका होता हुआ पाया है।मनोहर श्याम जोशी (आज का समाज)
Friday, March 14, 2014
Holi Festival in Metros (महानगरों में त्यौहार: होली)
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