कोई भी पर्व, सामाजिकता के उत्सव का ही प्रतीक है और परिवार उस सामूहिकता की पहली इकाई है. सो, ऐसे में परिवार की उपस्थिति स्वाभाविक रूप से उत्सवधर्मिता का अभाव का भाव को जन्म देता है. तिस पर भी पर्व के भाव को अभाव में न परिवर्तित करके उसे समभाव के साथ लेते हुए व्यष्टि को समष्टि से जोड़ना ही श्रेयस्कर है.
Sunday, March 16, 2014
Micro to Macro dynamics (व्यष्टि से समष्टि का जुड़ाव)
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