[भारत के स्वातन्त्र्योत्तर इतिहास का सबसे पहला और सबसे बड़ा हादसा था-अक्तूबर 1962 में चीन का आक्रमण। उसने न केवल सारे देश को हतप्रभ कर दिया था, हमारी दु:खद पराजय ने अब तक पाले हुए सारे सपनों के मोहजाल को छिन्न-भिन्न कर दिया था और मानो एक ही चोट में नेहरू युग की सारी विसंगतियाँ उजागर हो गयी थीं और खुद नेहरू, जिन्हें सारा देश प्यार करता था, पक्षाघात से पीड़ित पड़े थे। विचित्र यह था कि इस भयानक शून्य को किन्हीं नये मूल्यों से या आदर्शों से भरने की चिन्ता करने के बजाय चिन्ता थी ‘नेहरू के बाद कौन?’ और सिसायत के खेल खेले जाने लगे थे। उस सारी भयावह परिस्थितियों में उभरा था यह बिंब-सन् ’63 में। कई महीनों के दौरान लिखी गयी थी यह कविता-‘पुराना क़िला’।]खा...मो..श !बोलो मत...एक भी आवाज़, एक भी सवाल, लबों की हल्की-सी जुम्बिश भी नहीं नहीं,एक हल्की-सी दबी हुई सिसकी भी नहीं !हर दीवार के कान हैंऔर दीवार के इस पार का हर कानदीवार के उस पार चुगलखोर मुँह बन जाता हैजहाँ शहंशाहहकीमों, नजूमियों, खोजों और नक्शानवीसों से घिरेअपनी ज़िंदगी की आख़िरी रात गुजार रहे हैं !ख़बरदार !हिलो मत !सजदे में झुकने वाला हर धड़ दुआ माँगते हुएसिर से अलग कर दिया जाएगाशहंशाह को भरोसा नहीं कि कौन दुआ माँगने वालाअपने लबादे में खंजर छुपा कर लाया हो !किले के बाहर रौंदी हुई फसलें, बिछी हुई लाशें, जले हुए गाँव, भुखमरे लोग :क्या तुम्हारी दुआ उन्हें लगी जो शहंशाह को लगेगी ?मौत किले के आँगन में आ चुकी हैऔर शहंशाह के नक्शानवीस अभी तजवीजें पेश कर रहे हैंकि किले की दीवारें ऊँची कर दी जाएँखाइयों में खौलता पानी दौडा दिया जाएफाटकों पर जहर-बुझे नेजे जड़ दिये जाएँअँधेरा, बिल्कुल अँधेरा कर दिया जाएअँधेरा घुप !कौन है जो चादर, अगरबत्ती, बेले के फूल और चिराग लाया हैसाजिश ! खतरा ! दौड़ो दौड़ो अलमबरदारोखंजर से टुकड़े-टुकड़े कर दो ये चादर, ये गजरे, ये चिरागमान लिया कि इस अभागिन के बाप, भाई, प्रेमी और बेटेशहंशाह की खामख्याली से ऊबड़खाबड़ घाटियों में जाकर खेत रहेपर इसे क्या हक है कि यहउनके मजार पर इस अँधेरी रात चिराग रक्खेउस टिमटिमाती रोशनी में मौत कोशहंशाह के कमरे तक जाती हुई पगडंडी दीख गयी तो ?न एक चिरागन एक जुम्बिशन एक आवाज़ख़ा मो श !कौन है जो अँधेरे में मुट्ठियाँ कसेहोठ भींचे एक शब्द के लिए छटपटाता है...ख़ ब र दा र...बा अदब...बा मुलाहिजा...रास्ता छोड़ोपीछे हटोजानते नहीं कौन जा रहे हैं ?हँसो मत बेअदब !दु:ख की घड़ी हैदीवाने-खास के खासुलखास विदूषक कतार बाँधे अपने गाँव लौट रहे हैं।ये हैं जिन्होंने दरबार को हर संकट में राहत दीकत्लगाह में लुढ़कते हर विद्रोही सिर कोइन्होंने गेंद की तरह उछाल कर दरबार को हँसायारियाया के आँसुओं से अभिनन्दन पिरोयेखिंची हुई खालों को ढोलक पर मढ़कर तुकबन्दियाँ बजायींअगर मरते वक्त भी ये जहाँपनाह से शिरोपेच और अपनी दक्षिणा लेने गयेतो इन पर खीजो मत-तरस खाओ !तुम्हें क्या मालूम कि ये बरसों पहले अपने कुटुम्बियोंपड़ोसियों और गाँववालों की फरियाद लेकर आये थेजहाँपनाह को असलियत बताने !इनके भयभीत देहातीपन ने जहाँपनाह की दिलबस्तगी कीऔर तब से ये भयभीत बने रहे दिलबस्तगी की खातिरहँसो मतइनके जरीदार दुपट्टों और बड़ी पागों पर !ये बड़े लोग हैं-छोटा-सा मुँह लेकर अपने गाँवों को लौटते हुएइनसे इनके कुटुम्बी, पड़ोसी, गाँववाले पूछेंगेकि क्या तुमने शहंशाह को असलियत बतायीतो ये किसमें मुँह छिपायेंगे बिना इन पागों और जरीदार दुपट्टों केपीछे हटो नामसझोकौन बेदर्द है जोमखौल में इनके दुपट्टे खींचता है, पगड़ी उछालता है !बा...अदबबा...मुलाहिजा !एक धुपधुपाती हुई बेडौल मोमबत्तीखुफिया सुरंगों, जमीदोज तहखानों, चोर-दरवाजों और टेढ़े-मेढ़े जीनों पर घुमायी जा रही हैदीवारों पर खुदे ये किसके पुराने नाम फिर से दर्ज किये जा रहे हैं ?ये उन अमीर उमरावों के नाम हैं जिन्होंने कभीमुहरें और पुखराजबच्चों के मुँह से छीने हुए कौरनीलम और हीरेऔरतों के बदन से खसोटे हुए जेवरचमड़े की मुहरबन्द थैलियों में भर करशहंशाह को पेशेनजर किये थे !उनसे किले की दीवारें मजबूत की गयींउनसे बेगमात के लिए बिल्लौरी हौज बनेउनसे दीवानखानों के लिए फानूस ढलवाये गयेउनसे मरमरी फर्शों पर इत्र का छिड़काव हुआउनसे इन्साफ के घंटे के लिए ठोस सोने की जंजीर ढलवायी गयीऔर अब उन तमान बदनीयत अमीर उमरा के नामकत्ल का परवाना भेजा जा रहा हैताकि खुदा के सामने पेशी के वक्तपाक नीयत शहंशाह के जमीर परकोई दाग न छूट जाएएक धुपधुपाती हुई मोमबत्तीबिल्लौरी हम्मामों, अन्धी सुरंगों, खुशनुमा फानूसों, खौफनाक तहखानोंइत्र धुले फर्शों, चोरदरवाजों में से घुमायी जा रही हैदीवारों पर खुदे पुराने नामों की शिनाख्त के लिएउनमें शहंशाह के हमप्याला हमनेवाला जिगरी दोस्तों के नाम हैं !गजर बजेगा मायूस आवाज मेंऔर सहर होते ही महल का मातमकदा खोल दिया जाएगा !लटके हुए काले परदे, खुली हुई पवित्र पुस्तकें !लोग मगर ज्यादा मुस्तैद हैं ताजपोशी के सरंजाम मेंपायताने बैठे हुए लोगों का मातम में झुका हुआ सिरताज पहनने के लिए उठने का अभ्यास करना चाहता है !मगर बादशाह ने हाथ के इशारे से लुहार बुलवाये हैंवे ताज को पीट-पीट कर चौड़ा कर रहे हैंकल सुबह जब ताज पहनने के लिए सिर एक-एक कर आएँगेतब ताज कहीं बड़ा लगेगा और सिर बहुत छोटेऔर एक-एक कर इन सिरों से ताजऔर इन धड़ों से सिर उतार दिये जाएँगेकल सुबह शहंशाह न होगापर बाद मदफन उस पुरमजाक बादशाह कायह आखिरी मजाक अदा होगाजिसे देख करहँसते-हँसते लोटपोट हो जाएगी वह तमाशबीन रियायाजो हँसना खिलखिलाना जाने कब का भूल चुकी है !या मेरे परवरदिगारमुझ पर रहम कर !बदनसीब खुसरू की आँखों में दागी गर्म सलाखों सेजियादा तकलीफेदेह है इस बेडौल असलियत को अपनी आँखों देखनाऔर इसके बाबत कुछ भी न कर पाना !काश कि मैं भी अपनी निगाहें फेर सकतामगर मैं क्या करूँ कि तूने मुझे निगाहें दीं कि मैं देखूँऔर मैं तेरे देने को झुठला नहीं पाता !मौत किले के आँगन में घूम रही हैऔर वे हैं कि अभी किले की दीवारें ऊँची कर रहे हैंखाइयों के पास कँटीले झाड़ बोये जा रहे हैं जिनकी जड़ेकब्र में दफन नौजवानों की पसलियों में फूटेंगीओ !तूने मुझे क्यों भेज दिया इस पुराने किले में इस अँधेरी रात :जहाँ मैं छटपटा रहा हूँउस बेचैन चश्मदीदी पुकार की तरह जिसे एक-एक शब्द के लिएमोहताज कर दिया गया हो !खा...मो..श !खबरदा...र !!
Sunday, March 23, 2014
Purana qila-Dharamvir Bharati (पुराना क़िला-धर्मवीर भारती)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान
कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...
No comments:
Post a Comment