Saturday, March 1, 2014

Delhi a city (उजड़ते-बसते शहर का नाम है दिल्ली सांध्य टाइम्स, 27.02.2014)


देश की आजादी के बाद दिल्ली में बाहर से आने वाले व्यक्तियों को प्रमुख पर्यटक स्थलों पर बिकने वाले पोस्टकार्ड में लालकिला, कुतुब मीनार और राजपथ पर इंडिया गेट राजधानी के जीवंत प्रतीक थे । मानो इनके बिना किसी का दिल्ली दर्शन पूरा नहीं होता था । पर यह दिल्ली की एक अधूरी तस्वीर थी क्योंकि दुनिया में बहुत कम शहर ऐसे हैं जो दिल्ली की तरह अपने दीर्घकालीन अविच्छिन्न अस्तित्व एवं प्रतिष्ठा को बनाए रखने का दावा कर सकें । दिल्ली का इतिहास, शहर की तरह की रोचक है । ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली, दमिशक और वाराणसी के साथ आज की दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक है । इस शहर के इतिहास का सिरा भारतीय महाकाव्य महाभारत के समय तक जाता है, जिसके अनुसार, पांडवों ने इंद्रप्रस्थ के निर्माण किया था। समय का चक्र घुमा और अनेक राजाओं और सम्राटों ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया । दिल्ली का सफर लालकोट, किला राय पिथौरा, सिरी, जहांपनाह, तुगलकाबाद, फिरोजाबाद, दीनपनाह, शाहजहांनाबाद से होकर नई दिल्ली तक जारी है। समय के इस सफर में दिल्ली बदली, बढ़ी और बढ़ती जा रही है और उसका शाही रूतबा आज भी शहर के मिजाज में बरकरार है ।
आज नई दिल्ली की रायसीना की पहाड़ी पर बने राष्ट्रपति भवन के सामने खड़े होकर बारस्ता इंडिया गेट नजर आने वाला पुराना किला, वर्तमान से स्मृति को जोड़ता है । यहां से शहर देखने से दिमाग में कुछ बिम्ब उभरते हैं जैसे महाकाव्य का शहर, दूसरा सुल्तानों का शहर, तीसरा शाहजहांनाबाद और चौथा नई दिल्ली से आज की दिल्ली । इंद्रप्रस्थ की पहचान टीले पर खड़े 16वीं शताब्दी के किले और दीनपनाह से होती है, जिसे अब पुराना किला के नाम से जाना जाता है । दिल्ली में भूरे रंग से चित्रित मिट्टी के विशिष्ट बर्तनों के प्राचीन अवशेष इस बात का संकेत करती है कि यह करीब एक हजार ईसापूर्व समय का प्राचीन स्थल है । दिल्ली में सन् 1966 में कालका जी मन्दिर के पास स्थित बहाईपुर गाँव में मौर्य सम्राट अशोक महान के चट्टानों पर खुदे लघु शिलालेखों के बारे में आज कम लोग ही जानते हैं ।
दूसरे अदृश्य शहर के अवशेष आज की आधुनिक नई दिल्ली के फास्ट ट्रैक और बीआरटी कारिडोर पर चहुंओर बिखरे हुए मिलते हैं । महरौली, चिराग, हौजखास, अधचिनी, कोटला मुबारकपुर और खिरकी शहर के बीते हुए दौर की निशानी है जो कि 1982 में हुए एशियाई खेलों के दौरान खिलाडि़यों के लिए बनाए एशियाड विलेज, जहां अब दूरदर्शन का कार्यालय और सरकारी बाबूओं के घर हैं, फैशन हाउस, कलादीर्घाओं से लेकर साकेत में एक साथ बने अनेक शापिंग माल की चकाचौध में सिमट से गए हैं । दिल्ली में सन् 1982 में आयोजित किए गए एशियाई खेलों से दिल्ली में बसावट की प्रक्रिया में और तेजी आई । इस दौरान दिल्ली में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हुआ जिसके चलते इस इलाके में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से मजदूरों, राजमिस्त्रियों, दस्तकारों और दूसरी तरह के कामगारों का व्यापक स्तर पर प्रवेश हुआ । आठवें दशक के उस शुरूआती दौर में दिल्ली जैसे लोगो के लिए अवसरों की नगरी थी ।
हर साल लगने वाले प्रसिद्व हस्तशिल्प सूरजकुंड मेले में जाने वाले अधिकतर पर्यटक इस बात से अनजान है कि 10वीं शताब्दी में एक तोमर वंश के राजा ने अनंगपुर गांव में एक बांध का निर्माण किया था और सूरजकुंड उसी जल प्रणाली का एक भाग है । जबकि तोमर राजपूतों के दौर में ही पहली दिल्ली यानी 12 वीं शताब्दी का लालकोट बना जबकि पृथ्वीराज चौहान ने शहर को किले से आगे बढ़ाया । कुतुब मीनार और महरौली के आसपास आज भी इस किले के अवशेष देखे जा सकते हैं । जबकि कुतबुद्दीन ऐबक ने 12वीं सदी के अंतिम वर्ष में कुतुबमीनार की आधारशिला रखी जो भारत का सबसे ऊंचा बुर्ज (72.5 मीटर) है । अलाउद्दीन खिलजी के सीरी शहर के भग्न अवशेष हौजखास के इलाके में आज भी देखे जा सकते हैं जबकि गयासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के तीसरे किले बंद नगर तुगलकाबाद का निर्माण किया जो कि एक महानगर के बजाय एक गढ़ के रूप में बनाया गया था । फिरोजशाह टोपरा और मेरठ से अशोक के दो उत्कीर्ण किए गए स्तम्भ दिल्ली ले आया और उसमें से एक को अपनी राजधानी और दूसरे को रिज में लगवाया । आज तुगलकाबाद किले की जद में ही शहर का सबसे बड़ा शूटिंग रेंज है, जहां एशियाई खेलों से लेकर राष्ट्रमंडल खेलों की तीरदांजी और निशानेबाजी प्रतियोगिताओं का सफल आयोजन हुआ । आज यहां इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय से लेकर सार्क विश्वविद्यालय तक है ।
सैययदों और लोदी राजवंशों ने करीब सन् 1433 से करीब एक शताब्दी तक दिल्ली पर राज किया। उन्होंने कोई नया शहर तो नहीं बसाया पर फिर भी उनके समय में बने अनेक मकबरों और मस्जिदों से मौजूदा शहरी परिदृश्य को बदल दिया । आज की दिल्ली के उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर, जहां कि आज कुकुरमुत्ते की तरह असंख्य फार्म हाउस उग आए हैं, तक लोदी वंश की इमारते इस बात की गवाह है । आज के प्रसिद्व लोदी गार्डन में सैययद लोदी कालीन इमारतें को बाग के रखवाली के साथ सहेजा गया है । आज दिल्ली में बौद्विक बहसों के बड़े केंद्र जैसे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, इंडिया हैबिटैट सेंटर और इंडिया इस्लामिक सेंटर लोदी गार्डन की परिधि में ही है । सन् 1540 में शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हराकर भारत से बेदखल कर दिया । शेरशाह ने एक और दिल्ली की स्थापना की । यह शहर शेरगढ़ के नाम से जाना गया, जिसे दीनपनाह के खंडहरों पर बनाया गया था । आज दिल्ली के चिडि़याघर के नजदीक स्थित पुराना किला में शेरगढ़ के अवशेष देखें जा सकते हैं ।
हुमायूं के दोबारा सत्ता पर काबिज होने के बाद उसने निर्माण कार्य पूरा करवाया और शेरगढ़ से शासन किया । हुमायूं के दीनापनाह, दिल्ली का छठा शहर, से लेकर शाहजहां तक तीन शताब्दी के कालखंड में मुगलों ने पूरी दिल्ली की इमारतों को भू परिदृश्य को परिवर्तित कर दिया । बाबर, हुमायूं और अकबर के मुगलिया दौर में निजामुद्दीन क्षेत्र में सर्वाधिक निर्माण कार्य हुआ जहां अनेक सराय, मकबरे वाले बाग और मस्जिदें बनाई गईं । हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह और दीनापनाह के किले पुराना किले के करीब मुगल सम्राट हुमायूं  के मकबरे, फारसी वास्तुकला से प्रेरित मुगल शैली का पहला उदाहरण, के अलावा नीला गुम्बद के मकबरे, सब बुर्ज, चौसठ खम्बा, सुन्दरवाला परिसर, बताशेवाला परिसर, अफसारवाला परिसर, खान ए खाना और कई इमारतें बुलंद की गईं । एक तरह से यह इलाका शाहजहांनाबाद से पूर्व मुगल दौर की दिल्ली था ।

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