Friday, March 1, 2013

Journalism: Market

आज पत्रकारिता के दौर के एक मित्र से मुलाकात हुई जो अब एक बड़े चैनल का बड़ा नाम है । अच्छा लगा मिलकर । पर बाद में सोचा कि कहीं लेट कर, कहीं लोट कर बस अब यही फलसफा बचा है, पर्दे के पीछे का सच कितना घिघौना है । स्क्रीन की चमक कितनी लुभाने वाली पर कितनी खोखली है मीडिया की दुनिया। हर आदमी दो चेहरे, नहीं अनेक मुखौटे लिए घूम रहा है और मौके को देखकर मुखौटा बदल रहा है । अब सही में अपना सब पढ़ा लिखा भूलने का मन कर रहा है, क्या इसके लिए ही हम बिक रहे हैं या बिकने की तैयारी में है, बस कोई खरीददार तो मिले बाजार में ।

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