सबसे बड़ा खतरा भाषाई साम्राज्यवाद का है। अंग्रेजी का वर्चस्व दिनोदिन बढता जा रहा हैं। अर्थव्यवस्था, मीडिया, साहित्य और सम्पर्क की भाषा के रूप में वह सारी दुनिया पर अपनी इजारेदारी कायम करने के प्रयत्न में है। भारत जैसे कमजोर मन वाले देश के लिए भाषा के इस साम्राज्यवाद से सबसे बड़ा खतरा हमारी भाषाओं को है। अगर ऐसा हुआ अगर हमारी भाषाएं लुप्त हुईं तो हमारी स्मृतियां और मिथक भी लुप्त हो जायेंगे। हमारा इतिहास और वैशिष्टय भी लुप्त हो जायेगा।
जैसे धर्मपरिवर्तन किसी भी परिवार या कबीले को अनायास ही एक दो पीढ़ी बाद अपनी पूर्व स्मृतियों और मिथकों से वंचित कर देता है उसी तरह वैश्वीकरण् भी। आज वित्तीय और आवारा पूंजी पर आधारित अर्थव्यस्था कभी भी हमको नष्ट करने के लिए अपनी आवारागर्दी से चुपचाप वापस लौट सकती है, तब हम सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप में मुंह के बल गिरेंगें।
हम परोपजीवी और गुलाम हो जायेंगे इसलिए वैश्वीकरण और आवारा पूंजी से भिड़ंत की जरूरत है। उनको उनकी मांद मे ही मात देना, बचने का तरीका है। चीन और जापान ने इसे सफलतापूर्वक करके दिखा दिया है और मुंह के बल गिरने और गुलाम बनने का प्रतीक है लैटिन अमरीका, अफ्रीका और एशिया के बहुत सारे देश ।
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