Sunday, March 31, 2013

Indian Muslim:Abdulrahim khankhana

अकबर के नवरत्नों में एक अब्दुर्ररहीम खानखाना अपने जीवन की संझाबेला में वे चित्रकूट आ गए और भगवान राम की भक्ति करने लगे।
चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवधनरेश,
जा पर विपदा परत है, सो आवत एहि देश।
राम और कृष्ण दोनों के प्रति ही रहीम के मन में गहरा अनुराग था। वे मुसलमान थे लेकिन उन्होंने सच्चे अर्थों में भारत की सहिष्णु परंपरा का अवगाहन किया। उनका निर्मल मन सदा ही राजनीति के छल-प्रपंचों से दूर भगवद्दभक्ति में रमता था। यही कारण है कि जो पद, दोहे और रचनाएं वह कर गए वह हमारी महान और समृद्ध विरासत का सुंदर परिचय है।
भारतीय जीवनदर्शन और मूल्यों को रहीम ने व्यक्तिगत जीवन में न सिर्फ जिया वरन् उसे शब्द देकर हमेशा के लिए अमर कर दिया। एक बार किसी ने रहीम से पूछा कि यह हाथी अपने सिर पर धूल क्यों डालता है तो रहीम ने उसे उत्तर दिया- यह उस रजकण को ढूंढता फिरता है जिसका स्पर्श पाकर अहिल्या तर गई थी।
धूर धरत निज सीस पर, कहु रहीम केहि काज।
जेहि रज मुनिपत्नी तरी, सो ढूंढत गजराज।

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