Friday, March 8, 2013

nirmal verma, gyanpith prize

यह भला हम भारतवासियों को नहीं, तो किसे मालूम होगा, जिसकी मानसिकता पर एक लम्बे अर्से से विदेशी भाषा का प्रभुत्व रहा है-और दुर्भाग्य से स्वतन्त्रता के पचास वर्ष बाद आज भी है ।
निर्मल वर्मा, ज्ञानपीठ पुरस्कार उद् बोधन 27 जनवरी, 2001, नयी दिल्ली

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