तीन दिन पहले अचानक वात्स्यान जी के निधन से मन बहुत परेशान और क्लान्त रहा । पिछले कई वर्षों से मुझे उनके सान्निध्य का सौभाग्य मिलता रहा था । उनके अधिक नहीं मिलना होता था, किन्तु उनकी उपस्थिति हमेशा मन को आश्वस्त किये रहती थी ।
जिस सुबह उनकी मृत्यु हुई, उसी शाम उन्होंने अपने घर कुछ मित्रों को आमंत्रित किया था, अपनी नयी ताजा कविताएं सुनाने के लिए । घर के बाग में पेड़ की तीन डालों पर उन्होंने एक कुटिया बनाई थी-ट्री हाउस नाम से, जिसका उद्घाटन उनके काव्य पाठ से होना था ।
बाद में जब उनके घर गया, तो उस पेड़ के नीचे सिर्फ सूखे पत्तों का ढे़र जमा था और ऊपर कुटिया के दरवाजे उनकी प्रतीक्षा में खुले थे.........सब लोग मौजूद थे......सिवाय उनके जिन्होंने वह घर बनाया था ।
अज्ञेय पर निर्मल वर्मा, देहरी पर पत्र में
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