Wednesday, March 13, 2013

My Daughter and me

आज एक दिवंगत कवि का चित्र देखा,
उनकी बेटी का स्मरण हो आया ।
चेहरों की समानता और हबहू बनावट ने
मेरी नजर को ठिठका दिया ।
जैसे साइकिल से जाता कोई आदमी,
सड़क की दूसरी तरफ किसी चेहरे को देखकर
पल भर के लिए किनारे हो जाता है ।
आपको पता है
दिल्ली में बस और साइकिल दोनों के लिए
दाई ओर की लेन तय है ।
मानो बकरी और शेर
दोनों को एक ही घाट पर रहना है,
फिर कोई जिंदा बचे या जिंदा रहे
उसकी किस्मत ।
मुझे लगा क्या मैं भी बुढ़ापे में
इस कदर अपनी बेटी से एक हो पाऊंगा ।
क्या लोग मेरी तस्वीर देखकर भी,
मुझे मेरी बेटी से पहचान पाएंगे
आखिर देखने वालों का कहना है कि
मेरी बेटी भी कार्बन कापी है,
हूबहू मेरी ।
फिर यकायक लगा
मैं भी क्या बूझने लगा, लकड़बूझने वाले सवाल ?
पर लगा आखिर क्यूं न हो
मेरी दाढ़ी सफेद होने लगी है, भौंहे पकने लगी है ।
अब मेरी बेटी
कालेज के दिनों की तस्वीर देखकर
पूछती है सवाल
पापा, आप पहले से क्यों नहीं दिखते ?
मन ही मन अपने से बात करता हुआ,
उसका यह सवाल
मैं सुनकर भी अनसुना कर देता हूं ।
आखिर बेटी किसकी है ?
मुझे तो कोई संशय नहीं, आपको हो तो रहे
अब मुझे भरोसा है
कोई भी पहचान लेगा मुझे,
मेरी बेटी से
हो न हो यही है, बस यही है ।

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